आज दुनियाभर में लोग अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं. कुछ मुस्लिम देशों में भी योग को लेकर कई आयोजन समय-समय पर होते रहे हैं. हालांकि धर्म विशेष का नाम लेकर हुई इसकी आलोचना को भी नकारा नहीं जा सकता है. मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका योग से परहेज करता है तो मिस्र में 'योग' को इस्लामी व्यायाम करार दिया था. आइए आज इस खास मौके पर जानते हैं कैसे योग और नमाज के बीच समानता है.
करीब 1400 साल पहले इस्लाम में नमाज के रूप में इंसान को फिट रखने का फॉर्मूला दिया गया. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नमाज और योग एक-दूसरे के पूरक हैं. दरअसल, नमाज अदा करने की पूरी प्रक्रिया को अगर बारीकी से देखें तो योग और नमाज में काफी हद तक समानताएं नजर आती हैं. योग और नमाज दोनों के साइंटिफिक फायदों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
योग और नमाज के बारे में मौलाना जुबैर नदवी कहते हैं, "नमाज अल्लाह की इबादत है, योग नहीं. लेकिन दोनों के फायदे हैं. नमाज में जो प्रक्रियाएं हैं, उसे ध्यान से देखने पर पता चलता है कि नमाज सेहत के लिए कितनी मुफीद है. योग तो व्यक्ति पूरे दिन में एक बार करता है, जबकि नमाज दिन में पांच बार है. सुबह सूरज निकलने के पहले से लेकर डूबने और सोने से पहले तक नमाज पढ़ी जाती है."
नमाज से पहले 'वुजू' करना होता है, जिसमें आप अपने हाथ पांव और चेहरे को पानी से धोते हैं. जबकि योग से पहले शौच करना जरूरी होता है. योग और नमाज दोनों संकल्प से शुरू होता है. नमाज़ और योग में एक समान बात है ऊर्जा कम से कम खर्च करना और इससे ज़्यादा शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्राप्त करना है.
एक दिन में पांच बार पढ़ी जाने वाली नमाज़ में कुल 48 'रकत' (नमाज़ का पूरा चक्र) हैं जिनमें से 17 'फर्ज़' हैं और हर रकत में 7 प्रक्रियाएं (मुद्राएं) होती हैं. एक नमाज़ी 17 अनिवार्य रकत करता है तो माना जाता है कि वह एक दिन में करीब 50 मिनट में 119 मुद्राएं करता है. जिंदगी में यदि कोई व्यक्ति पाबंदी के साथ नमाज अदा करता है, तो बीमारी से वो दूर रहेगा.
नमाज की पहली प्रक्रिया में सीधे खड़े होना, जिसके जरिए रीढ़
की हड्डी सीधी रहे. इसके जरिए कमर की दिक्कत नहीं होती. इसके अलावा कंधे को कंधा मिलाकर रखते हैं और शरीर के वजन को अपने दोनों पैरों पर डालते हैं. इसके बाद 'रुकू' जिसमें आप पैरों को सीधी रखकर कमर से अपने शरीर को झूकाना होता है. इसके जरिए पैरों को घुटने को फायदा और पेट की कसरत होती है.
नमाज के दौरान सजदा (जब कोई दंडवत झुकता है और माथा और नाक ज़मीन को छूता है) करते हैं. इस प्रक्रिया का फायदा ये है कि इससे शरीर और दिमाग रिलेक्स होता है क्योंकि शरीर का वजन दोनों पैरों पर पड़ता है और रीढ़ की हड्डी सीधी होती है. सांसें प्राकृतिक रूप से आती हैं, व्यक्ति मजबूत महसूस करता है और विचारों पर पूरी तरह नियंत्रण होता है.
'सजदा' पर आंखें गड़ाने से एकाग्रता बढ़ती है. गर्दन के झुकने पर गर्दन की मुख्य धमनियों पर स्थित कैरोटिड साइनस पर दबाव पड़ता है. गले में हलचल होने से थाइराइड का कार्यप्रणाली सुचारु होती है और पाचन तंत्र नियमित होता है. यह सब 40 सेकंड की मुद्रा में होता है. मांसपेशियों को ताकत मिलती है. दूसरी मुद्रा में नमाज़ी हथेलियों को घुटनों पर टिकाते हुए और पैरों को सीधा करते हुए झुकता है.
शरीर कमर से सीधे एंगल पर झुकता है. यह आसन "पश्चिमोत्तानासन" के समान है जिसमें शरीर के ऊपरी हिस्से में खून पहुंचता है. रीढ़ की हड्डी लचीली होती है और रीढ़ की हड्डी की मांसपेशियों को पोषण मिलता है. घुटनों व पिंडली की मांसपेशियों की टोनिंग होती है. इससे कब्ज में भी आराम मिलता है. यह मुद्रा करीब 12 सेकंड तक की जाती है.
रक्त शुद्धि के लिए तीसरी मुद्रा में व्यक्ति सिर को उठाकर खड़ा होता है. इससे जो शुद्ध रक्त शरीर के ऊपरी भाग में गया था वो वापस लौटता है. यह 6 सेकंड की मुद्रा है. अगली मुद्रा में नीचे टिकना होता है, घुटने पर टिकना और माथा ज़मीन पर इस प्रकार से टिकाना होता है कि शरीर के सभी 7 भाग ज़मीन पर टिकें. अपने घुटनों और हाथों को फर्श पर टिकाते हुए. हम पहले नाक को छूते हैं, फिर माथे को और फिर बाद में घुटने के जोड़ों को छूते हुये एक सीधा एंगल बनाते हैं और गर्दन पर दबाव डालते हैं.नमाज की ये प्रक्रियाएं शारीरिक फायदे के लिए अहम है.
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