एएनआइ : मौसम की बारिश लोगों को पल-पल का इंतजार करा रही है। बादल आते हैं और मुंह चिढ़ाकर वापस चले जाते हैं। उमस परेशान कर रही है।
मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट का कहना है कि जुलाई में भले ही मानसून ने थोड़ी सी रफ्तार पकड़ ली है, लेकिन अल-नीनो का प्रभाव व्यापक स्तर पर पड़ने वाला है। भारत में मानसून कम होने की प्राकृतिक घटना को अल-नीनो कहा जाता है। लिहाजा, बुधवार को खत्म हुए पूरे एक हफ्ते में पूरे देश में औसत से 20 फीसद कम बारिश हुई है। इसके चलते देश के मध्य, पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में फसलों की उपज को लेकर चिंता गहराने लगी है।
भारत में मानसून शुरू होने की तारीख एक जून से अब तक कुल मिलाकर औसत से 16 फीसद कम बरसात हुई है। देश के आर्थिक विकास और खेतीबाड़ी के लिए मानसूनी बारिश बेहद जरूरी है। 55 फीसद कृषि योग्य भूमि में सिंचाई इसी बरसात पर आश्रित है। भारत में अमूमन हर वर्ष 75 फीसद बरसात जून से सितंबर के बीच इसी मानसून में होती है। मौजूदा समय में कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, असम और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अच्छी बारिश हो रही है।
भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) के अनुसार 17 जुलाई के इस हफ्ते में देश के मध्य भाग में कपास और सोयाबीन की उपज वाले इलाकों में औसत से 68 फीसद कम बरसात हुई है, जबकि दक्षिण में रबर और चाय के इलाकों में 71 फीसद कम बरसात हुई है। पश्चिम में गन्ना और मूंगफली के इलाकों
में भी औसत से कम बरसात हुई है। आइएमडी के हिसाब से औसत या सामान्य बरसात को 96 फीसद और 104 फीसद के बीच माना जाता है। यह आंकड़ा चार महीने के इस मौसम में औसत बरसात का पैमाना पचास साल की औसत 89 सेंटीमीटर बारिश मानी जाती है। जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर के बीच भारतीय किसान धान, मक्का, कपास, सोयाबीन और मूंगफली आदि की खेती करते हैं।
असम में बाढ़ से अब तक 30 मरे
इस छिटपुट बारिश के बावजूद कई पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके बाढ़ की चपेट में हैं। असम में मानसूनी बारिश के चलते पिछले दो हफ्तों में कम से कम 58 लाख लोग बेघर हो गए हैं। पिछले 24 घंटों में असम के अलग-अलग इलाकों से 10 और शव मिलने के बाद मरनेवालों की संख्या बढ़कर तीस हो गई है। इस समय असम और बिहार राज्य बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
उस्मानाबाद में पानी की भारी किल्लत
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के 700 से अधिक गांवों में करीब 550 गांव पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। महाराष्ट्र के इन इलाकों में पानी की भारी कमी हो गई है चूंकि यहां मानसून में बमुश्किल 15 फीसद बरसात हुई है। जिले के 225 जलाशयों में केवल 0.74 फीसद जलराशि बाकी रह गई है। मराठवाड़ा क्षेत्र के इन इलाकों में भूमिगत जल भी बहुत नीचे जा चुका है। यह बात स्थानीय किसानों और अन्य लोगों के लिए बेहद चिंता का विषय बना हुआ है। इन इलाकों में जलसंकट से बचने के लिए पानी के 234 टैंकरों का इंतजाम किया गया है।
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