धीरेंद्र श्रीवास्तव
लखनऊ. पाकिस्तान-पाकिस्तान और या अली-बजरंग बली का नाम लेकर ध्रुवीकरण करने की कोशिश उत्तर प्रदेश के दूसरे चरण के मतदान में भी विफल रही. मतदान केंद्रों पर धर्म के आधार की जगह दल के आधार वाली गोलबंदी चौतरफा नज़र आई. इस गोलबंदी में भाजपाई एक तरफ तो दूसरी तरफ सपा, बसपा, रालोद के कार्यकर्ता गठबन्धन के उम्मीदवारों के के पक्ष में अधिक से अधिक मतदान कराने की कोशिश करते देखे गए तो कांग्रेसी अपनी तरफ. इसकी वजह से अलीगढ़, हाथरस, अमरोहा, नगीना, मथुरा बुलन्दशहर, फतेहपुर सीकरी और आगरा संसदीय क्षेत्रों में हुई वोटिंग में 62.30 फीसदी मतदान हुआ जो गत लोकसभा चुनाव से .43 फीसदी अधिक है. इस वृद्धि को लेकर भाजपा को भाजपा को मगन होना चाहिए लेकिन उनकी नीद उड़ी नज़र आ रही है.
पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा के प्रति जबरदस्त उत्साह था जो हर सम्भव कोशिश के बाद भी इस बार नहीं दिखा. पार्टी के भीतर कोई खींचतान भी नहीं थी जो इस बार हर सीट पर रही. इस खींचतान की वजह से रमाशंकर कठेरिया जैसे वरिष्ठ और पार्टी के समर्पित नेता को आगरा से हटाना पड़ा. इसके बाद भी मतदान में वृद्धि का मतलब है, विपक्ष में उत्साह जो नीद उड़ने का मुख्य कारण है, लेकिन सार्वजनिक और अधिकृत तौर पर इसे मानने के लिए कोई भाजपाई तैयार नहीं है. जिसे देखिए वही बोल रहा है कि इस बार भी सभी आठो जीतेंगे.
भाजपा की इस बार उत्तर प्रदेश में हालत क्या है? इसे समझने के लिए दो उदाहरण काफी हैं. नम्बर एक-राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पार्टी के भीतर बिना लाग लपेट के कहना पड़ा कि सीट घटी तो मंत्री भी जाएंगे और मुख्यमंत्री भी. नम्बर दो- फ़िल्म अभिनेता धर्मेन्द्र कुमार ने मथुरा की एक सभा में कहना पड़ा कि वोट नहीं दिए तो पानी की टँकी पर चढ़ जायूँगा. यहाँ से सिने अभिनेत्री हेमा मालनी खुद उम्मीदवार हैं. इस स्थिति को समझने
के बाद ही चुनाव को पूरी तरह से हिन्दू मुस्लिम करने की कोशिश हुई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान में ले लिया. इसके बाद तो ढीला ढाला चुनाव आयोग भी सक्रिय हो गया. उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को तीन दिन तथा पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती व पूर्व मंत्री आजम खां को दो दो दिन के लिए चुनाव प्रचार से अलग कर दिया.
इसे लेकर सुश्री मायावती ने कहा कि दलित और आज़म खान ने कहा कि मुसलमान होने की वजह से टारगेट किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस रोक को पूजा के रूप में ग्रहण किया. उनकी पूजा को मीडिया ने जनजन तक पहुँचाने की कोशिश की. फिर भी धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण नहीं हुआ. सपा, बसपा, रालोद के परम्परागत मतदाताओं की गोलबंदी कायम रही.
इसलिए दूसरे चरण में भी लड़ाई सीधे सीधे भारतीय जनता पार्टी और गठबन्धन ( सपा, बसपा और रालोद )के बीच दिख रही है. इन दोनों के बीच से आगे निकलने के लिए कांग्रेस भी हाथ पांव मरती दिखी. दोनों प्रतिद्वंदियों के लोगबाग इस तीसरे की उपस्थिति को अपनी जीत का आधार मान रहे हैं. दावा करने में वह कांग्रेस भी पीछे नहीं हैं जिसके प्रदेश अध्यक्ष राजब्बर फतेहपुर सीकरी से से अपनी तकदीर आज़मा रहे हैं जिनका कुल आधार उनका सरल व्यवहार है. होगा क्या? यह तो 23 मई को पता चलेगा लेकिन इतना तो मतदान के रुझान से दिख रहा है कि सपा, बसपा और रालोद का गठबन्धन कमाल करेगा और कमल 2014 दोहराने से दूर है.
समाजवादी पार्टी इस स्थिति को पूरी तरह से गठबन्धन के पक्ष में मान रही है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने इसे लेकर आज़मगढ़ में साफ साफ कहा कि गठबन्धन के पक्ष में दूसरे चरण में भी चौकाने वाला परिणाम आ रहा है. जनता ने परिवर्तन का मूड बना लिया है. उसने मान लिया है कि देश तभी बनेगा जब नई सरकार बनेगी, नया प्रधानमंत्री बनेगा.
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