Kashish || @LocalNewsOfIndia
कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर लंबे समय से चल रही सियासी उठापटक फिलहाल थमती नजर आ रही है। कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से कदम पीछे खींच लिए हैं और सिद्धारमैया के नेतृत्व को चुनौती देने से फिलहाल परहेज किया है। पार्टी के भीतर मचे इस सियासी घमासान को शांत करने में कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला की भूमिका अहम रही, जिन्होंने सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सुलह कराने में सफलता पाई। मीडिया के सामने जब सुरजेवाला ने यह साफ किया कि सिद्धारमैया ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे, उस वक्त डीके शिवकुमार भी मंच पर मौजूद थे लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। इससे यह स्पष्ट हो गया कि शिवकुमार ने फिलहाल खुद को इस रेस से अलग कर लिया है। हालांकि कांग्रेस की ओर से इस फैसले की आधिकारिक वजह सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं।
सबसे पहला कारण संगठनात्मक पद को लेकर है। बताया जा रहा है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्हें आशंका है कि अगर उन्होंने यह पद छोड़ा, तो सिद्धारमैया अपने किसी करीबी को यह जिम्मेदारी सौंप सकते हैं, जिससे शिवकुमार की संगठन पर पकड़ कमजोर हो सकती है।
दूसरी अहम वजह बिहार विधानसभा
चुनाव मानी जा रही है। सिद्धारमैया पिछड़ी जाति से आते हैं और कांग्रेस फिलहाल उन्हें हटाकर बिहार में गलत सामाजिक संकेत नहीं देना चाहती, जहां 64 प्रतिशत से ज्यादा आबादी पिछड़ी या अति पिछड़ी जातियों की है। पार्टी नेतृत्व नहीं चाहता कि इस बदलाव से सामाजिक समीकरण बिगड़ें और इसका असर बिहार चुनाव में पड़े।
तीसरी वजह शिवकुमार के खिलाफ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग की जांच हो सकती है। 2019 में वह जेल भी जा चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व नहीं चाहता कि एक संभावित मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर विपक्ष को कोई हमला करने का मौका मिले।
चौथी और ताजा वजह आरसीबी की जीत के बाद बेंगलुरु में मची भगदड़ भी मानी जा रही है। शिवकुमार ने ही उस जश्न की अनुमति दी थी, जिसमें भीड़ नियंत्रण में न रहने से भगदड़ मच गई थी। इस हादसे को लेकर जनता में गुस्सा है और प्रशासनिक विफलता को लेकर भी सवाल उठे। यह विवाद भी उनके पक्ष में नहीं गया और इससे उनकी दावेदारी को और कमजोर किया।
इन सभी कारणों को मिलाकर देखें तो यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस फिलहाल किसी भी सियासी जोखिम से बचना चाहती है और इसलिए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाए रखने का फैसला लिया गया है। डीके शिवकुमार को शायद इंतजार करने के लिए कहा गया है — लेकिन इस सियासी मौन के पीछे गहरी रणनीति छिपी हुई है, जिसे समय ही उजागर करेगा।
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