राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा भेजे गये प्रस्ताव पर अगर प्रदेश सरकार मंजूरी की मुहर लगा देती है तो अगले साल प्रदेश में होने जा रहे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में वोटर ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत सदस्य के पदों पर खड़े उम्मीदवारों में कोई भी पसंद न आने पर 'नोटा' (इनमें से कोई नहीं) के विकल्प का इस्तेमाल कर सकेंगे।
चुनाव सुधारों की राह पर चलते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रदेश सरकार को इस साल 22 जनवरी को इस बाबत प्रस्ताव भेजा है। पता चला है कि प्रदेश सरकार इस प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार कर रही है।
बताते चलें कि प्रदेश में 2017 में हुए नगर निकाय चुनावों में नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव में 'नोटा' का इस्तेमाल हो चुका है। उस चुनाव में नगर निगम के महापौर और पार्षद का चुनाव इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत के चुनाव मतपत्र यानि बैलेट पेपर से करवाए गये थे। अगले साल होने वाले पंचायत बैलेट पेपर से ही करवाए जाएंगे और इन मतपत्रों में प्रत्याशियों की सूची के अंत में 'नोटा' का निशान भी अंकित किया जाएगा।
उत्तराखंड ने भी बदले हैं
नियम.
इसी क्रम में उत्तराखण्ड सरकार ने यह प्रावधान किया है कि जिस भी किसी पुरूष या महिला के दो बच्चे से ज्यादा संतानें होंगी। वह पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेगा। इसके साथ पंचायत चुनाव लड़ने के लिए उत्तराखण्ड में 10वीं कक्षा पास की योग्यता भी जरूरी कर दी गयी है। उत्तराखण्ड राज्य सरकार के इस प्रस्ताव को वहां के राज्य से अभी मंजूरी नहीं मिली है।
हरियाणा कर चुका है नोटा का प्रावधान
राज्य निर्वाचन आयोग के अपर निर्वाचन आयुक्त वेद प्रकाश वर्मा ने बताया कि हरियाणा के राज्य निर्वाचन आयोग ने वहां के पंचायत चुनावों में 'नोटा' के इस्तेमाल का प्रावधान कर दिया है। इसमें साथ में यह भी जोड़ दिया गया है कि अगर चुनाव में किसी प्रत्याशी के बजाए 'नोटा' का सबसे अधिक मत मिलते हैं और वह जीत जाता है तो फिर उपरेक्त चुनाव निरस्त कर दिया जाएगा और उस चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशी अगली बार होने वाले उपरोक्त चुनाव में खड़े नहीं हो पाएंगे। राज्य निर्वाचन आयोग को हरियाणा सरकार का यह कदम भी रास आ रहा है। 22 नवम्बर 2018 को हरियाणा सरकार द्वारा किये गये इस प्रावधान को भी आयोग यूपी में भी लागू करवाने का इच्छुक है।
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