जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री को हिरासत में रखे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि अगर आप उमर अब्दुल्ला को रिहा कर रहे हैं तो उन्हें जल्द रिहा कीजिए या फिर हम हिरासत के खिलाफ उनकी बहन की याचिका पर सुनवाई करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से अगले सप्ताह तक उसे सूचित करने के लिए कहा कि क्या वह जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हिरासत से रिहा कर रहा है। बता दें कि उमर अब्दुल्ला पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान रद्द किये जाने के बाद से हिरासत में हैं।
दरअसल, उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने उनके हिरासत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। सारा अब्दुल्ला पायलट ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में जम्मू कश्मीर प्रशासन के उस दावे को नकारा जिसमें कहा गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा होगा। सारा ने जम्मू कश्मीर लोक सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत अब्दुल्ला की हिरासत को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि अपने भाई के सत्यापित फेसबुक एकाउन्ट की छानबीन करने पर वह यह देखकर हतप्रभ रह गईं कि जिन सोशल मीडिया पोस्ट
को उनका (उमर का) बताया गया है और दुर्भावनापूर्ण तरीके से जिसका उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया है, वह उनका नहीं है।
अपनी याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा दायर जवाब के प्रत्युत्तर में सारा ने कहा, 'इस बात से इंकार किया जाता है कि हिरासत में बंद व्यक्ति की महज मौजूदगी और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने भर से सार्वजनिक व्यवस्था कायम रखने को आसन्न खतरा है। पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य में लोगों की जान जाने के बारे में तथ्यात्मक आंकड़े मौजूदा विवाद के उद्देश्यों के लिये पूरी तरह अप्रासंगिक हैं।'
सारा ने दावा किया कि अब्दुल्ला के आधिकारिक फेसबुक एकाउन्ट से कोई पोस्ट नहीं किया गया है, जैसा जिन सामग्रियों पर भरोसा किया गया है उसमें दावा गया है। उन्होंने अपने प्रत्युत्तर में कहा, 'दरअसल मौजूदा मामले के तथ्य और परिस्थितियां जिसमें हिरासत में बंद व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल की गई एकमात्र सामग्री उनके सोशल मीडिया पोस्ट हैं। जिन पोस्ट पर भरोसा किया गया है उनका अस्तित्व ही नहीं है और गलत और दुर्भावनापूर्ण तरीके से इसे उनका बताया गया है जो पूरी तरह से उनके हिरासत के आदेश को प्रभावित करता है और यह कानूनन टिकने लायक नहीं और पूरी तरह असंवैधानिक है।'
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