पचास साल पहले चांद पर इंसान का पहुंचना संभव ही नहीं हो पाता, अगर स्पेस सूट ना होता। पिछले 50 सालों में अंतरिक्ष विज्ञान के साथ-साथ स्पेस सूट्स की तकनीक भी बदलती और बेहतर होती गई है।
दुनिया के पहले स्पेस सूट का नाम मर्करी था, जो 1960 में दूसरे विश्वयुद्ध में फाइटर पायलट्स के सूट के आधार पर बनाया गया था। इस सूट का रंग सिल्वर था ताकि अंतरिक्ष के अंधकार में अंतरिक्ष यात्रियों को आसानी से ढूंढा जा सके।
इसके बाद 1969 में जो स्पेस सूट आया, उसका नाम था 47 माप अपोलो सूट, जिसे चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथियों ने पहना था। इस सूट में लगी पाइप के जरिए ऑक्सीजन और पानी सप्लाई किया जाता था ताकि शरीर के तापमान को स्थिर रखा जा सके।
फिर 1986 में पहली बार नारंगी रंग का स्पेस सूट आया, जिसे इसके रंग
की वजह से पंपकिन सूट भी कहा गया। इस सूट की खासियत ये थी कि सूट में दबाव खोए बिना अंतरिक्ष यात्री अपने दस्ताने उतार सकते थे।
2011 में बोइंग ने सबसे हल्का सूट डिजाइन किया। सूट में दस्ताने, जूते और हेलमेट के साथ वजन महज 7 किलो है जो पिछले स्पेस सूट्स के मुकाबले लगभग आधा था। हल्का होने की वजह से अंतरिक्ष यात्री इसे पूरे मिशन के दौरान पहन सकते थे।
निजी स्पेस एजेंसी स्पेस एक्स ने 2018 में अपना थ्री डी प्रिटेंड स्पेस एक्स सूट लॉन्च किया जो सिर से पांव तक एक ही टुकड़े से बना था। इसमें जूते, हेलमेट और दस्ताने भी जुड़े हुए थे।
साल 2018 में ही इसरो ने अपना स्पेस सूट लॉन्च किया था और अब नासा ने नई जेनरेशन का स्पेस सूट तैयार किया है। जिसे पहनकर अंतरिक्ष यात्री पचास साल बाद एक बार फिर चांद पर सैर कर पाएंगे।
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