दरवाजे पर हॉलीवुड

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दरवाजे पर हॉलीवुड

Administrator 30-04-2019 21:56:28

हरि मृदुल

वाकई फिल्मी परिदृश्य तेजी से बदल रहा है. हॉलीवुड ने हिंदुस्तान में अपने लिए बड़ी संभावनायें तलाश करनी शुरू कर दी हैं. उसे शुरुआत में कामयाबी मिलनी भी शुरू हो गयी है. इस वर्ष के आरंभ में हॉलीवुड की 'कैप्टन अमेरिका', 'सिविल वॉर', 'द एंग्री बड्र्स मूवी', 'द कंज्यूरिंग 2', 'कुंग फू पांडा 3', 'द अवेंजर्स' और 'द जंगल बुक' आदि फिल्मों ने भारत में न केवल अच्छा खासा कारोबार किया बल्कि अपने साथ रिलीज हुई बॉलीवुड फिल्मों के बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन को भी प्रभावित किया. खासतौर पर द जंगल बुक ने तो 180 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारेाबार कर सफलता का नया इतिहास रच दिया. इस फिल्म ने अपने आसपास रिलीज हुई तमाम फिल्मों के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया. हालांकि हॉलीवुड फिल्मों की सफलता की शुरुआत गत वर्ष ही फ्यूरियस 7 फिल्म से हो चुकी थी. उस फिल्म ने भी 100 करोड़ क्लब में प्रवेश किया था. इस फिल्म की सफलता ने जैसे हॉलीवुड को एक नयी राह दिखा दी. 
हॉलीवुड की फिल्म निर्माण कंपनियों को समझ में आ गया है कि हिंदुस्तान भी उनकी फिल्मों का बहुत बड़ा बाजार है. इस बाजार में अपनी बड़ी जगह बनाने के लिए थोड़ी कोशिश और की जाये तो चकित करनेवाले  परिणाम निकल सकते हैं. यही वजह है कि अब हॉलीवुड की फिल्में डब करवा कर भी रिलीज हो रही हैं. इन डब फिल्मों में भारत के बड़े अभिनेताओं की आवाज उधार ली जा रही है. हालिया रिलीज फिल्म 'बीएफजीÓ इसका उदाहरण है. स्टीवन स्पीलबर्ग की इस फिल्म के मुख्य किरदार को अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज दी है. अमिताभ के अलावा परिणीति चोप्ड़ा और गुलशन ग्रोवर ने भी दूसरे अहम चरित्रों की डबिंग की है. इससे पहले 'द जंगल बुक ' में इरफान खान और प्रियंका चोपड़ा ने अपनी आवाज दी थी. कह सकते हैं कि 'द जंगल बुक ' की सफलता में इन लोकप्रिय कलाकारों की आवाज का भी योगदान रहा.
हॉलीवुड की फिल्में हमारे देश में पहले भी रिलीज होती रही हैं लेकिन बहुत सीमित संख्या में. निश्चित रूप से 'टाईटैनिक', 'जुरासिक पार्क', 'अवतार', 'सुपरमैन' या 'बैटमैन' जैसी फिल्में हमारे यहां बहुत सफल हुई हैं लेकिन इन्हें व्यावसायिक महत्त्वाकांक्षा के साथ रिलीज नहीं किया गया था. परंतु अब बिजनेस की एक विशेष रणनीति के तहत बॉलीवुड हमारे यहां पांव पसार रहा है. जिससे बॉलीवुड की फिल्म निर्माण कंपनियों में घबराहट का माहौल पैदा हो रहा है. बॉलीवुड के निर्माता यह बात अच्छी तरह समझ गये हैं कि हॉलीवुड दूरगामी रणनीति के तहत ही भारत में अपने पांव पसार रहा है. यही वजह है कि हॉलीवुड की कंपनियों ने अपनी फिल्मों की डबिंग हिंदी के अलावा प्रादेशिक भाषाओं में भी करवानी शुरू कर दी है. वे अपनी फिल्मों के हिंदी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम डब वर्जन लेकर आ रहे हैं. इससे स्थानीय सिनेमा पर असर पडऩा लाजिमी है. 
तमाम ट्रेड विशेषज्ञों का भी आकलन है कि इस बारे में जल्द गौर नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब हॉलीवुड की फिल्में हमारे सिनेमाघरों में लगी होंगी और बॉलीवुड अपनी फिल्मों की रिलीज के लिए गिड़गिड़ाता नजर आयेगा. बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों  पर गहरी नजर रखनेवाले ट्रेड विशेषज्ञ कोमल नाहटा का कहना है, 'निश्चित रूप से हॉलीवुड की फिल्में बॉलीवुड की फिल्मों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं. इसकी वजह यह है कि हॉलीवुड की फिल्मों की गुणवत्ता के सामने हम कहीं नहीं ठहरते हैं.  उनकी फिल्मों की निर्माण प्रक्रिया बहुत उन्नत होती है बल्कि कंटेंट के मामले में भी वे हमसे बहुत बेहतर होते हैं. उच्च स्तरीय तकनीक के इस्तेमाल में वे अब भी हमसे बहुत आगे हैं. उनकी फिल्मों का बजट हमारी फिल्मों से 20 गुना ज्यादा होता है. अगर बॉलीवुड के निर्माताओं को हॉलीवुड का मुकाबला करना है, तो उसका एक ही तरीका है कि अपनी जमीन को पकड़े रहो और देसी कहानी  पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्म बनाओ. परंतु हमारे यहां ज्यादातर फिल्मकार भेड़चाल का अनुसरण करनेवाले हैं. उनका विश्वास मसाला फिल्मों में रहता है और वे स्टारडम पर अधिक भरोसा करते हैं.'
इसमें कोई शक नहीं कि देश में हॉलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता और उनके दर्शकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. इंटरनेट उपभोक्ताओं की बढ़त से हॉलीवुड फिल्मों की प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है. अब आम दर्शक भी स्तरीय मनोरंजन चाहता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मसलन फेसबुक व्हाट्स एप और ट्विटर आदि की वजह से बहुत जल्दी इस बात का पता चल जाता है
कि कौन सी फिल्म देखने लायक है और किस पर पैसा खर्च करना पैसे की बरबादी है. यही वजह है कि बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरूख खान की फिल्म 'फैन' दर्शकों ने पूरी तरह नकार दी. यही हाल कैटरीना कैफ की फिल्म 'फितूर' का हुआ. 
ऐश्वर्य राय जैसी स्टार की फिल्म 'सरबजीत' भी बॉक्स ऑफिस परर कोई जादू नहीं जगा सकी. जबकि इन्हीं दिनों रिलीज हुई कई हॉलीवुड फिल्मों ने उम्मीद से कई गुना अधिक व्यवसाय किया. दर्शकों का यह निर्णय हतप्रभ कर देनेवाला था, लेकिन इसका विश्लेषण सही तरह से हुआ नहीं. इसकी वजह यह रही कि दर्शकों ने मनोरंजन के साथ नये कंटेंट वाली फिल्मों को वरीयता दी. उनके पास फिल्म देखने के विकल्प मौजूद थे और उन्होंने इस मौके का सटीक इस्तेमाल किया. यह सही है कि उपरोक्त तीनों ही फिल्मो में दर्शकों का दिल जीतने की क्षमता नहीं थी. हालांकि इनसे ऐसी अपेक्षा अवश्य थी. आखिरकार दर्शकों ने अपना निर्णय सुना दिया. 'सुल्तान' जैसी ब्लॉक बस्टर फिल्म दे चुके सलमान खान हॉलीवुड की फिल्मों की सफलता पर अपनी राय कुछ इस प्रकार प्रकट करते हैं, 'हॉलीवुड वालों ने हमारे मार्केट को अच्छी तरह समझ लिया है.उन्हें पता चल चुका है कि अब भारतीय दर्शक किस तरह की फिल्में चाह रहे हैं. उनकी फिल्मों के सामने हमारी फिल्मों के फ्लॉप होने की वजह यह है कि हम अपनी जमीन को छोड़ रहे हैं और अपने इमोशंस से दूर हो गये हैं. 'सुल्तान' की सफलता का राज ही यह है कि इसमें न केवल हमारी जमीन है, बल्कि इमोशन को भी अहमियत दी गयी है.'
जाने माने अभिनेता इरफान खान भी हॉलीवुड फिल्मों के हिंदुस्तान में छा जाने को लेकर चिंतित नजर आते हैं. बावजूद इसके कि वे इस समय हिंदुस्तान के ऐसे इकलौत अदाकार हैं, जो हॉलीवुड की फिल्मों में अपनी अहम मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं. जल्द ही उनकी हॉलीवुड फिल्म 'इनफेर्नो' भी रिलीज होगी, जिसमें वे हॉलीवुड के  शीर्ष अभिनेता टॉम हैंक्स के साथ नजर आयेंगे. चूंकि इरफान दूसरे अभिनेताओं के मुकाबले हॉलीवुड की  प्रवृत्तियों से ज्यादा  परिचित हैं, इसलिए उनके कहे को अवश्य महत्व दिया जाना चाहिये. दरअसल वे हॉलीवुड की उस बाजारू मानसिकता को भांप चुके हैं, जिसके तहत वह दुनिया की कई देशों की फिल्म इंडस्ट्री को तहस-नहस कर चुका है. इरफान कहते हैं, 'हॉलीवुड तेजी से अपने  पांव बॉलीवुड में  पसार रहा है, यह चिंता का विषय है. हॉलीवुड काफी आक्रामक व्यावसायिक तरीके अपनाता है. उसके  पास ताकत है और बिजनेस की कुशल रणनीति भी है. उसकी फिल्मों की बड़े पैमाने  पर हो रही रिलीज से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री  पर यकीनन नकारात्मक असर पडऩे वाला है. कह सकते हैं कि हॉलीवुड की फिल्मों से हमारे फिल्म निर्माताओं को जबर्दस्त चुनौती मिलने जा रही है. हालांकि इस चुनौती के सिर्फ नकारात्मक पक्ष ही नहीं हैं. इस चुनौती की वजह से ही बॉलीवुड के निर्माता ऐसी फिल्में बनाने के लिए प्रेरित होंगे जिनमें एक्टरों को काम करते हुए संतुष्टि मिलती है और जिनके कलात्मक  मानदंड ऊंचे होते हैं. हमारी इंडस्ट्री को इतना समय हो चुका है, फिर भी ज्यादातर लोग एक ही ढर्रे की उटपटांग फिल्में बनाते हैं. ऐसे निर्माताओं के लिए अब ज्यादा कठिन वक्त आ रहा है.'
जाने माने फिल्म निर्माता वासु भगनानी का कहना है कि हॉलीवुड फिल्मों से इतना ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है. इसकी वजह यह है कि हर हॉलीवुड फिल्म हमारे यहां अच्छा बिजनेस नहीं कर सकती है. वही फिल्में हमारे यहां बड़ा बिजनेस करती हैं, जो दुनियाभर में अपना डंका बजा चुकी होती हैं. स्तरीय फिल्मों को हर जगह महत्व मिलना ही चाहिये. वे आगे कहते हैं, 'हमें चीन की तर्ज पर ही हॉलीवुड सिनेमा का मुकाबला करना होगा. हमें सिनेमाघरों की की संख्या बढ़ानी होगी. हमारे यहां जनसंख्या को देखते हुए अब भी काफी कम सिनेमाघर हैं. सिनेमाघर बढ़ेंगे, तो हम अपनी फिल्मों के ज्यादा प्रिंट रिलीज कर सकते हैं.' खैर, यथार्थ तो यही है कि आगामी दिनों में बॉलीवुड की 'मनमर्जियां', 'बेंजो', 'मिर्जिया', 'फोर्स 2' और 'दंगल' जैसी कई बड़ी फिल्मों को हॉलीवुड फिल्मों की जबर्दस्त चुनौती मिलने जा रही है. वजह यह है कि इन फिल्मों के साथ हॉलीवुड की 'क्वीन ऑफ केटवे',  'मैग्नीफिसेंट सेवन', 'मिस पेरेग्रीन्स होम फॉर  पेक्युलियर  चिल्ड्रेन', 'फेंटास्टिक बीस्ट्स एंड ह्वेअर टू फाइंड दैम' और 'असासिंस क्रीड' जैसी बहुप्रतीक्षित फिल्में रिलीज होंगी. डर यही है कि कहीं ये फिल्में दर्शकों का रुख न मोड़ दें. अगर ये फिल्में हिंदी में डब होकर रिलीज की जाती हैं, तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है.
 
 

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