राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित 92 साल के संगीतकार वनराज भाटिया बदहाली में दिन बिता रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक वे मुंबई के एक अपार्टमेंट में अकेले रह रहे हैं। किसी बीमारी से जूझ रहे हैं। उनके घुटनों में दर्द रहता है, जिसके चलते बिस्तर से उठकर चलना-फिरना मुश्किल है। सुनाई देना लगभग बंद हो गया है और याददाश्त भी जा चुकी है। न उनके बैंक अकाउंट में पैसे बचे हैं और न ही कमाने और गुजर-बसर करने का कोई साधन है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वनराज ने शादी नहीं की थी। उनकी एक बहन है, जो कनाडा में रहती है। मुंबई में भी उनके कुछ रिश्तेदार हैं, जो छोटी-मोटी आर्थिक मदद कर देते हैं। सुजीत कुमारी नाम की एक नौकरानी उनका ख्याल रख रही है। वह उनके घरेलू काम भी करती है। भाटिया ने एक बातचीत में बताया था कि उन्होंने अपना पैसा शेयर बाजार में लगाया था, जो कि साल 2000 के करीब मार्केट में डूब गया। इसी के चलते उनके पास कोई बचत नहीं है।
वनराज के पास डॉक्टर के पास जाने और दवाएं खरीदने तक के पैसे नहीं हैं। मुंबई मिरर से बातचीत में उनकी नौकरानी सुजीत ने उनकी कुछ ब्रिटिश क्रॉकरी दिखाईं। सुजीत की मानें तो गुजर बसर करने के लिए इन क्रॉकरीज को बेचा जा रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वनराज किराए के घर में रहते हैं, जिसका किराया कुछ सामाजिक संगठन और लोग मिलकर चुकाते हैं।
सुजीत के मुताबिक, वनराज की पाप्सो नाम की एक पालतू बिल्ली थी। करीब 6 महीने पहले घर के बाहर एक कार के नीचे आने से उसकी मौत हो गई। तब से भाटिया एकदम टूट गए। वो खामोश रहने लगे। पाप्सो उन्हें इतनी प्रिय थी कि आज नींद में भी वे उसका नाम पुकारते हैं।
वनराज भाटिया ने 1988 में आई फिल्म 'तमस' के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। इस फिल्म को गोविंद निहलानी ने डायरेक्ट किया था। ओम पुरी, दीपा साही, भीष्म साहनी और सुरेखा सीकरी की इसमें मुख्य भूमिका थी। 2012 में संगीत और कला में अहम योगदान के लिए भारत सरकार ने वनराज को पद्मश्री से सम्मानित किया था।
1927 में मुंबई में जन्मे भाटिया लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ म्यूजिक के गोल्ड मैडलिस्ट हैं। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के वेस्टर्न म्यूजिक डिपार्टमेंट के इंचार्ज भी रह चुके हैं। उन्होंने हजारों विज्ञापनों के जिंगल्स, फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में संगीत दिया है।
भाटिया ने डायरेक्टर श्याम बेनेगल की 9 फिल्मों 'अंकुर', 'भूमिका', 'मंथन', 'जुनून', 'कलयुग', 'मंडी', 'त्रिकाल', 'सूरज का सातवां घोड़ा' और 'सरदारी बेगम' में संगीत दिया। इसके अलावा 'जाने भी दो यारो' और 'द्रोह काल' जैसी अन्य फिल्मों में भी उनका संगीत सुना गया। उन्होंने सीरियल 'भारत एक खोज' के 'सॉन्ग 'सृष्टि से पहले सत्य नहीं था' में संगीत दिया था। उनके द्वारा संगीतबद्ध किए गए गाने 'हम होंगे कामयाब' (जाने भी दो यारो' और 'मारे गाम काथा पारे' (मंथन) काफी पॉपुलर रहे हैं।
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