आदिपर्व के सन्देश : दूसरो को कष्ट देने वाले के सभी शुभ कर्म हो जाते निष्फल

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आदिपर्व के सन्देश : दूसरो को कष्ट देने वाले के सभी शुभ कर्म हो जाते निष्फल

08-07-2019 17:44:22

वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में पांडव और कौरवों की कथा के माध्यम से बताया गया है कि हमें कौन-कौन से काम करना चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए। महाभारत के आदिपर्व के अनुसार अगर हम गलत नियत के साथ अच्छे काम करते हैं तो उनका शुभ फल नहीं मिलता है, बल्कि परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आदिपर्व में लिखा है कि

तपो न कल्को$ध्ययनं न कल्क: स्वाभाविको वेदविधिर्न कल्क:।

प्रसह्य वित्ताहरणं न कल्क-स्तान्येव भावोपहतानि कल्क:।।

(महाभारत - आदिपर्व - 1/275)

> इस श्लोक का अर्थ यह है कि भगवान के लिए की गई तपस्या फलदायी होती है, शास्त्रों के अध्ययन से भी शुभ फल मिलते हैं और कड़ी मेहनत करके प्राप्त किया धन
भी शुभ होता है, लेकिन ये सभी शुभ कर्म दूसरों को कष्ट देने की नियत से किए जाए तो निष्फल हो जाते हैं। जैसे किसी का अहित करने के लिए पूजा-पाठ की जाए, तपस्या की जाए तो इसका कोई फल नहीं मिलता है। दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए शास्त्रों में उपाय खोजे जाए तो ये कर्म भी पाप कर्म माना गया है। अगर हम किसी को कष्ट पहुंचाने के लिए धन कमा रहे हैं तो इससे हमारे पापों में ही वृद्धि होगी।

> सुखी जीवन के लिए हमें इन पाप कर्मों से बचना चाहिए। कभी कोई ऐसा काम न करें, जिससे दूसरों को परेशानी होती है, तभी जीवन सुखी और सफल बन सकता है।

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