हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। तदनुसार, सावन माह में कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी 24 जुलाई को यानी आज है। कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी या भैरवाष्टमी के रूप मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान भैरव की पूजा और व्रत करते हैं। इस व्रत में भगवान काल भैरव की उपासना की जाती है। कालअष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने से घर में फैली हुई हर तरह की नकारात्मक ताकतें दूर हो जाती है। भगवान शिव ने बुरी शक्तियों को मार भागने के लिए रौद्र रुप धारण किया था। कालभैरव इन्हीं का स्वरुप है।
रोगों से दूर रहता है व्यक्ति
कालाष्टमी के दिन व्रत रखकर भगवान भैरव की पूजा तो की जाती है। इसके साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की कथा और भजन करने से भी घर में सुख और समृद्धि आती हैं। साथ ही काल भैरव की कथा सुननी चाहिए।
कालअष्टमी के दिन भैरव पूजन से प्रेत और बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं। मान्यता के अनुसार भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है। इस दिन काले कुत्ते को रोटी जरूर खिलानी चाहिए।
कालाष्टमी पर किसी पास के मंदिर जाकर कालभैरव को दीपक जरूर लगाना
चाहिए।
कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि -विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं। काल उससे दूर हो जाता है।
इस व्रत को करने से व्यक्ति के रोग दूर होने लगते हैं और उसे हर काम में सफलता भी प्राप्त होती है।
काल-भैरव व्रत कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के व्यक्तित्व को लेकर कुछ ऐसा आपत्तिजनक बोल दिया जिससे शिव जी को क्रोध आ गया. फलस्वरूप उनके शरीर की छाया से काल भैरव की उत्पत्ति हुई. जिस दिन ऐसा हुआ उस दिन मार्गशीष माह की अष्टमी थी. काल भैरव ने शिव जी को अपशब्द कहने को लेकर आवेश में आकर अपने नाखून से ब्रह्मा जी का मस्तक काट दिया.
लेकिन जब काल भैरव का गुस्सा शांत हुआ तब उन्हें अपनी गलती का एहसास और इसके बाद वो ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए भटकते-भटकते काशी पहुंचे. वहां जाकर उनके मन को शांति मिली. उसी समय आकाश से भगवान काल भैरव के लिए आकाशवाणी हुई कि उन्हें काशी का कोतवाल (रखवाला) नियुक्त किया गया है और उन्हें वहीं निवास कर लोगों को उनके पापों से छुटकारा दिलाना होगा.
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