रायपुर. जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर समाज भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व मनाता है. पर्युषण को जैन धर्म के लोग काफी महत्वपूर्ण त्योहार मानते हैं. यह त्योहार लगातार दस दिन तक चलता है. जैन धर्म के अनुयायी उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य के जरिए आत्मसाधना करते हैं. यह पर्व 27 अगस्त से शुरू होगा और 3 सितंबर तक चलेगा.
इस त्योहार को मनाने के दौरान लोग अगले 8 से 10 दिन तक ईश्वर के नाम पर उपवास करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. श्वेतांबर समाज 8 दिन तक इस त्योहार को मनाते हैं, जिसे अष्टान्हिका कहा जाता है. जबकि दिगंबर समाज के अनुयायी दस दिन तक पर्युषण पर्व को मनाते हैं, जिसे दसलक्षण कहते हैं.
इस त्योहार की मुख्य बातें जैन धर्म के पांच सिद्धांतों पर आधारित हैं. जैसे कि अहिंसा यानी कि किसी को कष्ट ना पहुंचाना, सत्य, अस्तेय यानी कि चोरी ना करना,
ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी कि जरूरत से ज्यादा धन एकत्रित ना करना.
पर्युषण का आमतौर पर यह मतलब है कि मन के सभी विकारों का खात्मा करना. यानी कि मन में उठने वाले सभी प्रकार के बुरे विचार को इस त्योहार के दौरान खत्म करने का व्रत ही पर्युषण महापर्व है. इन विकारों पर जीत हासिल कर शांति और पवित्रता की तरफ खुद को ले जाने का उपाय ढूंढते हैं. भाद्रपद मास की पंचम तिथि से शुरू होकर यह पर्व अनंत चतुर्दशी की तिथि तक मनाया जाता है.
हिंदू धर्म के नवरात्रि के समान यह त्योहार माना जाता है. यह पर्व जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत अहिंसा के व्रत पर चलने की राह दिखाता है. इस पर्व के दौरान जैन धर्म के लोग पूरे संसार के लिए मंगलकामना करते हैं और अनजाने में की गई गलतियों के लिए माफी मांगते हैं. मॉनसून के दौरान मनाया जाने वाला यह त्योहार पूरे समाज को प्रकृति से जुड़ने का सीख भी देता है.
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