सुनीलम
अभी अभी यह खबर साथी तलख
खान ने दी,वे लंबे समय से बीमार थे लेकिन मेरी उनसे बात होती रहती थी.बीच में अरुण मिश्र
जी के साथ उनसे मिलने भी गया था ,विस्तार से पार्टी और राजनीतिक मुद्दों को लेकर चर्चा हुई
थी.
वे आजीवन समाजवादी रहे.समाजवादी
पार्टी ने उन्हें राज्य सभा सदस्य बनाया था,वे देश के वरिष्ठ
समाजवादी नेता आजम खां के अत्यंत करीबी थे. इतने करीबी की विदिशा का चौधरी मुनव्वर
सलीम द्वारा आयोजित हर निजी या सार्वजनिक सभी कार्यक्रमो में उन्होंने शिरकत की.असल
में दोनो का रिश्ता पारिवारिक रिश्ते से भी कहीं अधिक प्रगाढ़ था.अंधविश्वास का
रिश्ता था.जो दोनो ने आजन्म निभाया.
मेरे साथ उनका सम्बन्ध कम
से कम 40 वर्ष पुराना था. हम तमाम आंदोलनों ,सम्मेलनों और समाजवादी
कार्यक्रमो में साथ रहे.
यह सुख दुख में वे साथ
रहे.मुझे याद है जब मुझे सजा हुई सबसे पहले उन्होंने फोन किया सबसे पहले भोपाल जेल
मिलने पहुंचे. 1998 को मुलताई में पुलिस गोली चालन के बाद से आयोजित शहीद किसान
स्मृति सम्मेलन के वे स्थाई अतिथि थे.
उनका भाषण सभी को मंत्र
मुग्ध कर देता था. भारतीय गरीबों ,वंचितों विशेषकर अल्पसंख्यक तबकों के वे सच्चे प्रतिनिधि थे.
राज्य सभा में चुने जाने के बाद दिल्ली में मेरा उनके साथ उठना बैठना बढ़ गया था ,वे सभी जनसंगठनों
,किसान संगठनों के मुद्दे प्रभावकारी ढंग से उठाते
थे. जब भी जाता था बिना
खिलाए पिलाए नहीं जाने देते थे.अपने साथ बिठाकर राज्य सभा की तकरीरें दिखाते ,सभी मुद्दों पर
सुझाव लेते .खुद रेलवे आरक्षण कन्फर्म कराने के लिए मेरे लिए सदा विशेष प्रयास
करते रहे.
उन्हें एक बार मैंने तारा
,पनवेल में डॉ जी जी पारिक जी के 90 वे जन्मदिन के अवसर पर बुलाया. लौटकर
उन्होंने यूसुफ मेहर अली जी के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को लेकर ऐतिहासिक
भाषण दिया.भारत रत्न देने की मांग बहुत प्रभावशाली ढंग से रखी.
हालांकि उनको राज्य सभा
में 6 वर्षों का एक ही कार्यकाल मिला लेकिन उन्होंने कई सदस्यों के बराबर अकेले
काम किया.
आजमखान जी के चुनाब छेत्र
रामपुर का वे काम देखा करते थे,ऐसा अपवाद स्वरूप देखा गया कि मध्यप्रदेश का एक नेता उत्तर
प्रदेश में इतना लोकप्रिय हुआ हो.
उनका नजदीकी रिश्ता
किस्से ज्यादा था यह कहना मुश्किल होगा ,उनके निजी और राजनीतिक मित्रों में हिन्दू और मुसलमान दोनों
थे.
चौधरी मुन्नवर सलीम के
पार्टियों के ऊपर उठकर रिश्ते रहे. आजीवन समाजवादी समाजवादी रहने के बावजूद
उन्होंने संकीर्णताओं से ऊपर उठकर रिश्ते बनाये और निभाए. शिवराज सिंह के साथ
करीबी रिशतों को लेकर उन्हें तमाम सवाल भी झेलने पड़े.
नोबल पुरस्कार विजेता
कैलास सत्यार्थी के साथ बचपन से हो उनका करीबी रिश्ता था.
मध्यप्रदेश के समाजवादी
आन्दोलन के वे एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ थे.उनकी मौत से समाजवादी आन्दोलन को
अपूर्णीय नुकसान पहुंचा है.
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