लखनऊ अगस्त । सोनांचल के आदिवासी अपने हक के लिए ३० अगस्त को सूबे की सबसे बड़ी पंचायत यानी विधान सभा तक मार्च करेंगे । यह फैसला सोनभद्र की दुद्धी तहसील के मुख्यालय पर जुटे हजारों आदिवासियों ने किया है । इन आदिवासियों की मांग है कि पंचायत चुनाव में रैपिड़ सर्वे कराकर आदिवासियों की सीटें आरक्षित की जाए । जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने आज यहाँ यह जानकारी दी । जन संघर्ष मोर्चा ने गुरूवार को सोनभद्र में आदिवासी अधिकार सम्मेलन किया था ।
अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा -सरकारें आदिवासी समाज के लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिया है कि पूरे प्रदेश में लगभग 52 हजार प्रधान पदों में मात्र 31 सीटें ही आदिवासियों के लिए आरक्षित की जाएगी और ब्लाक प्रमुख की 821 सीटों में महज एक सीट और जिला पंचायत की तो एक भी सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं की गयी जबकि सरकारी नौकरियों और षिक्षा में आदिवासियों को मिल रहे दो फीसदी आरक्षण के अनुसार प्रधान पद की लगभग 1100 और ब्लाक प्रमुख की 16 सीटें आरक्षित की जानी चाहिए थी। आदिवासी बाहुल्य वाले सोनभद्र जनपद में तो एक भी सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं की यहां तक कि दुद्धी विधानसभा क्षेत्र, जहां सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी है, वहां की तो जिला पंचायत की सभी सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गयी है जहां से कोई भी आदिवासी चुनाव ही नहीं लड़ पायेगा। इसी क्षेत्र के जाबर, डड़ियारा जैसे कई गांव में तो अनुसूचित जाति की आबादी ही नहीं है पर उन्हे इस श्रेणी में डाल दिया गया है परिणामस्वरूप वहां ग्रामपंचायत का ही गठन नहीं हो पायेगा। मायावती सरकार के इस फैसले से पूर्ववर्ती मुलायम सरकार की तरह इस बार भी आदिवासी समाज पंचायत चुनाव की प्रक्रिया से बाहर हो जाएगा । यह सवाल पंचायत में उठाया गया ।
सम्मेलन की अध्यक्षता आदिवासी नेता गुलाब चन्द गोड़ के नेतृत्व में बने अध्यक्ष मण्ड़ल ने की और संचालन चन्द्र देव गोड़ ने किया। सम्मेलन को जसमो के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर, पूर्व प्रधान राम विचार गोड़, कमला देवी गोड़, अशर्फी खरवार, वंश बहादुर खरवार, रामराज सिंह गोड़, बलबीर सिंह गोड़, राम बहादुर गोड़, नागेन्द्र पनिका, रामायन गोड़, विकास शाक्य एडवोकेट, इन्द्रदेव खरवार, शाबिर हुसैन, गंगा चेरो, अनंत बैगा, आदि ने संबोधित किया।
गौरतलब है कि गोड़, खरवार, चेरों, पनिका, बैगा, भुइंया, सहरिया जैसी जिन जातियों को 2003 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था, उनके लिए पंचायत से लेकर विधानसभा व लोकसभा तक सीट ही नहीं आरक्षित की गयी, वहीं कोल, मुसहर, धांगर, धरिकार जैसी आदिवासी जातियों को तो आदिवासी का दर्जा ही नहीं दिया गया। आदिवासी समाज के साथ हुए इस अन्याय के खिलाफ जन संघर्ष मोर्चा ने प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री तक को कई बार पत्र भेजे, दिल्ली से लेकर लखनऊ तक धरना- प्रदर्शन के माध्यम से ज्ञापन दिए , यहां तक कि राज्य चुनाव आयुक्त तक ने मोर्चा की मांग को संज्ञान में लेकर प्रदेश सरकार को दिशा -निर्देष भेजे है बावजूद इसके सरकार ने रैपिड़ सर्वे कराकर आदिवासियों के लिए सीट आरक्षित करने की न्यूनतम मांग को भी पूरा नहीं किया। जन संघर्ष मोर्चा के आदिवासी अधिकार सम्मेलन में प्रदेश सरकार के इस आदिवासी विरोधी फैसले के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने और आदिवासियों के अधिकारों के लिए लखनऊ में मार्च करने का निणर्य आदिवासी समाज ने लिया।
अखिलेंद्र ने कहा कि लम्बे संघर्षों के बाद जंगल की जमीन पर मालिकाना अधिकार के लिए बने वनाधिकार कानून को ठड़े बस्ते के हवाले कर दिया गया है। बड़े पैमाने पर आदिवासियों और वनाश्रित जातियों के दावों को कानून की मूल भावना के विपरीत खारिज कर दिया गया। बड़ा ढोल नगाड़ा पीट के जो पट्टा दिया भी गया उसका सच यह है कि चार बीघा जमीन पर काबिज काश्तकार को महज चार बिस्वा जमीन देकर वाहवाही लूटी गयी। मंहगाई के इस दौर में जब आम आदमी का जीना दूभर हो गया है तब भी मनरेगा योजना को विफल कर दिया गया है, सौ दिन काम देने की बात कौन करें जो थोड़ा बहुत काम मिला भी उसकी मजदूरी बड़े पैमाने पर बकाया है और मजदूरों की हाजरी तक जाबकार्ड पर नहीं भरी जा रही है। एक तरफ आदिवासी इलाकों के प्राकृतिक संसाधनों की लूट हो रही है वहीं आदिवासी समाज और आम नागरिक बंघो, बरसाती नालों, कच्चे कुएं का दूषित पानी पीकर आएं दिन मर रहा है। आदिवासियों और आम आदमी के अधिकारों पर हो रहे इन हमलों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जायेगा।
जनसत्ता
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