अंकुरित अन्न एक तरह से बिलकुल नया अन्न है .स्वाद की दृष्टि से जो फर्क पड़ता है वह अपने आप में इतना पर्याप्त है कि एक बार प्रयोग शुरू करने पर मेहनत मशक्कत अखरनी बंद हो जाएगी .प्रोटीन की मात्रा बढ़ने पर जो स्वास्थ्य लाभ होगा ,स्फूर्ति का संचार और अहसास होगा ,वह बिलकुल नया होगा .काम से जी चुराने की आदत भी बदलेगी .पुरानी कहावत है ,जैसा अन्न वैसा मन .
स्वाभाविक है की थोडा श्रम जुटाकर अंकुरित किया अन्न खाएंगे तो मन भी श्रम के लिए प्रेरित होगा .घी तेल के मुद्दे पर हमारा विचार इस तरह है कि जबतक स्वास्थ्य संबंधी आधुनिकता शोध ज्ञान से परिचय न हो जाए तब तक घी तेल का प्रयोग कम ही करें .लेकिन स्टयू से आगे का नुस्खा चाट का है .अंकुरित खिचड़ी की चाट का आनंद उठा कर आजमाइए .हमारे बेटे को दाल में सब्जियां बहुत प्रिय नहीं ,लेकिन मोठ और मटर की चाट बहुत अच्छी लगती है .स्टयू खाने पर भी उसे कुछ एतराज हो रहा था .हमने उसे अंकुरित अन्न की खिचड़ी में उबला आलू ,ककड़ी ,खीरा ,प्याज ,टमाटर की कतरन डालकर नींबू निचोड़ कर परोस दिया तो
गेंहू की चाट में उसे मटर मोठ की चाट से ज्यादा मजा आया .
हमें स्वयं भी यही लगा कि अंकुरित मोठ और चने के साथ अंकुरित गेहूं स्वाद में किसी से कम नहीं है .जहां तक गुणों का सवाल है तो गेहूं के ज्वारे के रस का प्रचार सिर्फ बाबा रामदेव ही नहीं दूसरे डाक्टर भी कर रहे हैं .बात यह है कि चाट का मसाला कैसे बनाएं ?उसका सरल और उत्तम नुस्खा नोट करे .दो चार रुपए का पुदीना धोकर सुखा दें .एक छटांक सूखा पुदीना तो दो छटांक सांभर ,सेंधा और काला नमक मिलकर डालिए .काली मिर्च ,पीपल ,सोंठ ,तीनो एक छटांक .बस इसे कूट लीजिए .यह गेहूं की खिचड़ी की चाट चटपटी भी है तो गुणकारी भी .
आज गेहूं के ज्वारे के जूस के मुंबई में हजारों और दिल्ली के दर्जनों केंद्र हैं .साल दो साल में गेहूं की चाट कहिए या अंकुरित अनाज की चाट कहिए ,यह भी खोमचों पर उपलब्ध हो जाएगी .मुद्दा सिर्फ महंगाई से लड़ने और स्वास्थ्य का नहीं है ,खान पान में स्वाद की सुरुचि पहली प्राथमिकता है .समर्थ वर्ग की देखा देखी गरीब तबके भी इसका इस्तेमाल सीख जाएंगे .
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hi
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