आज के सरकारी अस्पतालों की हालत न तो आपसे छुपी है और न ही हमसे। चूँकि स्वास्थ सेवा किसी भी शहर या देश का प्राथमिकता होती है परन्तु ऐसा कब तक संभव हो पता है कोई नहीं जनता। यूँ तो सरकार हर जिले में एक AIIMS खोलने के वादे करती तो है, लेकिन शायद एक आप डिस्पेंसरी की तहर ही खुल के रह जाती है। इसके आभाव में कई ग्रामीण इलाको में बड़ी बीमारियां आसानी से अपना दबदबा बना के हावी रहती है, और सही इलाज न मिल पाने के चक्केर में ही कितने बच्चो को जान गावनि पड़ती है। बड़ी माँ को मुक्ति मिल गयी जैसे शब्दों से खुद को संतुष्ट करना पड़ता है या अपनी बेटियों को डोली की बजाये अर्थी पर ले जाना पड़ता है।
खैर आज हम बात करेंगे ऐसे मजदुर की इसने इन बातो को गलत साबित करने की कसम खायी। माँ की तबियत ख़राब होने बाद मजदुर ने एम्बुलेंस को कई फ़ोन लगाए लेकिन एम्बुलेंस की बजाये उसे अपनी के माँ का मृतिक मुँह ही देखने को मिला। जिसके बाद उस मजदूर ने एक ऐसा काम का बीड़ा उठाया जिसको देख ये बात साबित हो गयी की सिस्टम बदलने के का इंतज़ार करोगे तो मर ही जाओगे।
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में ढालाबारी गाँव से ताल्लुक रखने वाले इस शख्स का नाम है करीम-उल-हक। करीम जलपाईगुड़ी में एक चाय के बागान में मजदूरी करते हैं और पेट पालने भर के पैसे निकाल लेते हैं। उनके परिवार में पत्नी समेत दो बेटे हैं। पैदा होने से लेकर अब तक मुफलिसी में जीवन काटने वाले करीम ने अपनी आत्मा की तृप्ति के लिए परोपकार का एक अनोखा काम चालू किया है।
करीम अपने आस-पास के गांव वालो जरुरत के समय पर अपनी बाइक से अस्पताल
ले जाने का काम करते है, और इसके लिए वो कभी भी किसी से एक फूटी कोड़ी तक नहीं लेते। जरुरत पड़ने पड़ प्राथमिक चिकित्सा के लिए उनकी बाइक में चिकित्सा किट भी मौजूद रहती है। हलकी-फुलकी छूट लगने पर तो वे खुद ही मरहम पट्टी करदेते है।
सेवा शुरू करने के बाद कई लोगो को उनकी इस पर शक था की जिसकी खुद की आर्थिक स्तिथि ख़राब हो वो भला कैसे दूसरों की मदद करेगा। बाद में लोगो के पूछे जाने पर करीम ने अपनी आप बीती सुनाई। दरसल 20 साल पहले बीमार पड़ी थी, उनको वहां से थोड़ी सी दूर अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं था, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी। करीम तब से ही सबकी मदद किया करते है। जिससे करीम को उनके गांव में एम्बुलेंस दादा कह कर बुलाते है।
करीम बताते हैं की चाय के बागान में 5000 रुपये प्रति माह की कमाई हो जाती है। जिससे किसी तरह घर का चूल्हा जल रहा है। वहीं बाइक एम्बुलेंस के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वो आसपास के 20 गाँवों तक में अपनी सुविधा देते हैं। साथ ही उन्होंने जिला अस्पताल के डॉक्टर से प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग भी ली है जिससे वो घाव की ड्रेसिंग और लोगों को इंजेक्शन बड़ी आसानी से लगा पाते हैं।
करीम भले ही आपके लिए अनजान हों लेकिन उनके इस काम को सरकार ने बहुत पहले ही नोटिस में ले लिया था। उनकी इस समाज सेवा के लिए सरकार उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है। पुरस्कार मिलते ही करीम का साहस और बढ़ गया। अब लोगों द्वारा दी गई मदद और अपनी कुछ जमा पूँजी लगाकर वो और भी शिद्दत से इस काम में जुटे हुए हैं।
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments