क्या औरतो के गुप्तांग ही दर्शाते है पुरुषवाद

कानून के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए सम्मेलन का आयोजन चंपारण में मतदाता जागरूकता बिहार में दूसरे चरण के मतदान पर रिपोर्ट उच्च न्यायालय के आदेषो के बाद राष्ट्रीय उच्च मार्ग पांच परवाणु शिमला पर चला प्रशासन का पीला पंजा राजस्थान में पहले चरण के लोकसभा चुनाव संपन्न Jodhpur : कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जय राम रमेश जोधपुर पहुंचे भाजपा ने हुबली की घटना पर कर्नाटक सरकार पर साधा निशाना ओडिशा: झारसुगड़ा में नाव हादसा श्रमिक मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चित्रकूट मतदाता जागरूकता -मिर्जापुर इंदौर साइबर सुरक्षा माँ पर अभद्र टिप्पणी पर बोले चिराग पासवान जीत के प्रति आश्वास हैं पप्पू यादव प्रदेश मतदान आज का राशिफल Lok Sabha Election 2024: प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के दौरान विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। No Entry के सीक्वल में आइये जानते है कौन से यंग सितारे नजर आएँगे कर्नाटक-कॉलेज कैंपस में हुई वारदात गुजरात में मिले 4.7 करोड़ वर्ष पुराने अवशेष आज का राशिफल

क्या औरतो के गुप्तांग ही दर्शाते है पुरुषवाद

Deepak Chauhan 07-05-2019 16:06:38

समाज एक ऐसी व्यवस्था जहाँ पर लोग अपनी-अपनी मूल भूत सुविधाओं के साथ रह सके।  लेकिन कई बार देखा गया है की लोगो में कई कारणों को लेकर अनबन होने लगती है इसने सबसे पहला कारण होता है लिंग।  जी हाँ लिंग से यहाँ मेरा मतलब व्यक्तिगत सोच से है जो कई बार दिखाई पड़ती है जैसे कई समाजो में सुनाई पड़ जाती है जिसे हम पुरुषप्रधान शब्द कहते है।  जी है देखा जाये तो महिलाओं के गुप्तांगो के नाम मर्दो के ऊपर ही क्यों रखे गए है। आखिर ऐसी क्या वजह थी ऐसा करने की।  क्या ये मन जाये की आज भी महिलाओं के दिमाग और शरीर पर मर्दो का ही बोलबाला है। अगर आप औरत की कमर के इर्द-गिर्द नज़र दौड़ाएं तो कई पुरुष नज़र आएंगे. गर्भाशय के पीछे आप को जेम्स डगलस छुपे हुए मिलेंगे। अंडाशय के क़रीब ही गैब्रिएल फैलोपियन का डेरा जमा दिखेगा. महिला की योनि या वजाइना की बाहरी परत में कैस्पर बार्थोलिन धूनी रमाए हुए नज़र आएंगे। तो, ऑर्गेज़्म का केंद्र कहे जाने वाले जी-स्पॉट पर अर्न्स्ट ग्रैफ़ेनबर्ग से मुलाक़ात होगी। सवाल ये है कि किसी महिला के अंदरूनी और निजी अंगों से ये मर्द क्यों चिपके हुए हैं?


आखिर ऐसा होने की क्या वजह है?

आईये जानते है बात को, ये गर्भाशय के पीछे जो थैली होती है, उसे पाउच ऑफ़ डगलस कहते हैं। लैबिया यानी वजाइना की ऊपरी परत में छुपी ग्रंथियों का नाम कैस्पर बार्थोलिन के नाम पर रखा गया है. फ़ैलोपियन ट्यूब का नामकरण गैब्रिएल फैलोपियन के नाम पर हुआ है. और मशहूर जी-स्पॉट अर्न्स्ट ग्रैफ़ेनबर्ग के नाम से दर्ज है। मर्दों की बात ही क्यों करें, महिलाओं के अंगों से तो देवता भी चिपके हुए हैं. वेजाइना यानी योनि के भीतर जो झिल्ली होती है, हाइमेन, वो यूनान के देवता हाइमेन के नाम पर है. हाइमेन के बारे में कहा जाता है कि उनकी मौत शादी की रात हो गई थी। बात विज्ञान की हो या मेडिसिन की, मर्दों और देवताओ ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. हज़ारों जीवों के नाम मर्दों या देवताओं के नाम पर रखे गए हैं. जैसे कि साल्मोनेला बैक्टीरिया का नाम अमरीकी डॉक्टर डैनियल एल्मर साल्मन के नाम पर रखा गया है. जबकि बैक्टीरिया की खोज उनके सहायक ने की थी। 


क्यों महिलाओं वाले नाम नहीं?

असल में आज से एक सदी पहले तक मेडिकल साइंस में औरतों का दख़ल ना के बराबर था. शायद ये इसकी एक वजह हो। हालांकि, ये भी हक़ीक़त ही है कि मर्दवादी समाज की वजह से अक्सर ऐसी खोजों का सेहरा मर्दों के सिर बंधा. ऐसी खोज के नाम भी उनके नाम पर रखे गए. ये सिलसिला आज भी क़ायम है।  

 ज़बान भी हमारे विचारों पर गहरा असर डालती रही है. ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडीलेड के प्रोफ़ेसर घिलाद ज़करमान कहते हैं कि अगर किसी शब्द का ताल्लुक़ महिला से होता है, तो उसमें मुलायमियत, नाजुकपन तलाशा जाती है. वहीं मर्दों के नाम वाले शब्दों में मज़बूती को जोड़ा जाता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि शरीर को लेकर हमारे विचार क्या जेंडर बायस यानी औरत-मर्द के बीच फ़र्क़ से प्रभावित होते हैं? 


शब्दों में लिंग-भेद

हम सब हिस्टीरिया शब्द से वाक़िफ़ हैं. ये शब्द ग्रीक भाषा से आया है, जिसकी बुनियाद है हिस्टीरिका. ग्रीक भाषा में गर्भाशय को हिस्टीरिका ही कहते हैं। मेडिकल साइंस के जन्मदाता हिपोक्रेटस ने गर्भाशय का ये
नाम रखा था. और इसी से हिस्टीरिया नाम की बीमारी का नामकरण हुआ. इसे शुरुआत में महिलाओं की दिमाग़ी बीमारी कहा जाता था, जो गर्भाशय के हिलने से होने की बात कही जाती थी। पहले-पहल इस बीमारी का ज़िक्र मिस्र के लोगों ने ईसा से 1900 से साल पहले किया था. मगर ग्रीक लोगों ने तो उससे आगे ये तर्क दिया कि गर्भाशय को तो यहां-वहां रास्ते से भटकने की आदत है और इसी वजह से महिलाओं को हिस्टीरिया होता है। जेंडर बायस का आलम ये था कि किसी दौर में हिस्टीरिया के इलाज के लिए महिलाओं को योनि मसाज दिया जाता था, ताकि वो ऑर्गैज़्म हासिल कर के हिस्टीरिया के दौर से बाहर आ सकें। 1952 तक हिस्टीरिया को अमरीका मनोवैज्ञानिकों की किताब में बीमारी के तौर पर दर्ज रखा गया था. इसी से आप औरतों और मर्दों के बीच फ़र्क़ की मानसिकता को समझ सकते हैं। सेहत से जुड़ी बात करें, या बीमारियों की, या फिर इलाज के तौर-तरीक़ों की, हर जगह आप को पुरुषों वाले नाम ही देखने-सुनने को मिलेंगे। 


लैटिन भाषा से ही हुआ वजाइना शब्द का उदय 

औरत का बदन जंग में जीती हुई मर्द की जागीर बन जाता है. फिर उसकी वजाइना का मूल शब्द शीथ लैटिन भाषा से आता है, जिसका सीधा ताल्लुक़ चाकू या तलवार से है। इसी तरह यूनानी शब्द क्लेटोरिस, औरत की योनि से हमेशा के लिए चिपका दिया जाता है, जिसका मतलब बंद कर देना है। 2013 में सूसन मोर्गन ने शरीर विज्ञान की पढ़ाई में जेंडर बायस को लेकर रिसर्च की थी। इससे ये बात सामने आई थी कि मेडिकल की पढ़ाई में अक्सर पुरुषों के शरीर के हवाले से ही पढ़ाया जाता है। ऐसा लगता है कि इंसान का शरीर तो मर्द का शरीर है. औरतों का शरीर तो केवल फ़र्क़ बताने के लिए पढ़ाया जाता है. अब अगर मेडिकल की पढ़ाई से लेकर शरीर के अंगों के नामकरण तक पुरुषों के नाम ही हावी हैं, तो सवाल ये उठता है कि आख़िर इनका आज कितना असर और कैसा असर हमारी सोच और पढ़ाई पर पड़ रहा है?


क्या फर्क पड़ता है इस से?

अमरीकी प्रोफ़ेसर लीरा बोरोडित्सकी कहती हैं कि इससे ये लगता है कि मेडिकल साइंस में जो भी तरक़्क़ी हुई है, उसके लिए केवल पुरुष ही ज़िम्मेदार है। लीरा कहती हैं कि नामकरण ऐसा नहीं होना चाहिए कि मर्दों ने औरत के बदन को जीता और फिर उसके अंगों के नाम मर्दों के नाम पर रख दिए। बल्कि अब तो ये नाम बदलने चाहिए ताकि इनसे ये पता चले कि इनका इंसान के शरीर में रोल क्या है। साल 2000 में एना कोस्तोविक्स ने स्वीडन में पुरुषों के यौन अंग के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द स्नॉप की तरह ही महिलाओं के यौन अंग यानी वजाइना के लिए स्निपा शब्द इस्तेमाल करने की मुहिम छेड़ी। तब से ही स्वीडन में फ़ेमिनिस्ट कार्यकर्ताओं ने अंग्रेज़ी के मर्दवादी शब्दों की जगह महिलाओं को बराबरी का बताने वाले शब्दों के इस्तेमाल पर ज़ोर देना शुरू किया है। अब उन्होंने योनि के ऊपर की झिल्ली को हाइमेन के बजाय वजाइनल कोरोना कहना शुरू किया है। अब ये देखना होगा कि महिलाओं के अंगों के ये नए नाम कितने चलन में आते हैं। वक़्त आ गया है कि औरतों के अंदरूनी अंगों से लटके इन मर्दों को और न लटकने देते हुए, टपकने दिया जाए!

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :