1995 से अब तक 71% तक कम हुईं गौरैया की संख्या

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1995 से अब तक 71% तक कम हुईं गौरैया की संख्या

Khushboo Diwakar 19-07-2019 15:07:46

  • लंदन जूलॉजिकल सोसायटी, ब्रिटिश ट्रस्ट ऑर्निथोलॉजी और लिवरपूल यूनिवर्सिटी ने मिलकर की रिसर्च
  • लंदन में गौरेया की 11 ब्रीडिंग कॉलोनी से ब्लड और मल के सेंपल लिए गए
  • जांच में मलेरिया के परजीवी प्लाजमोडियम रोलिक्टम की पुष्टि हुई, 74 फीसदी गौरैया मलेरिया से जूझ रही थीं
  • लंदन में 1995 से अब तक गौरेया की संख्या में 71 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है लेकिन वजह चौकाने वाली है। हालिया रिसर्च में गिरती गौरेया की संख्या का कारण एवियन मलेरिया को बताया जा रहा है। जिसका पता लगाने के लिए लंदन जूलॉजिकल सोसायटी और ब्रिटिश ट्रस्ट ऑर्निथोलॉजी ने मिलकर रिसर्च की थी। इनमें होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए लिवरपूल यूनिवर्सिटी को रिसर्च में शामिल किया गया है।

    3 साल का डाटा इकट्ठा किया गया

    1. शोधकर्ताओं ने लंदन के 11 जगहों से नवंबर 2006 से सितंबर 2009 का डाटा इकट्ठा किया। ये जगह गौरेया की ब्रीडिंग कॉलोनी मानी जाती हैं। एक से दूसरी जगह के बीच 4 किलोमीटर का अंतर था ताकि अलग-अलग गौरेया की जानकारी इकट्ठा की जा सके और इसे बड़े स्तर पर समझा जा सके


      शाेधकर्ताओं ने खासतौर पर नर गौरेया की संख्या को रिपोर्ट में शामिल किया। सावधानीपूर्वक पकड़कर इनके ब्लड और मल के सेंपल लिए गए। सेंपलिंग के बाद इन्हें छोड़ दिया गया। इसका लक्ष्य इनमें संक्रमण की जांच करना और उसकी गंभीरता को समझना था।

      1. गौरेया की 11 कॉलोनियों की जांच में सामने आया कि इनकी संख्या गिर रही है। औसतन 74 फीसदी गौरैया मलेरिया से जूझ रही हैं। हालांकि संक्रमण की गंभीरता का स्तर एक से दूसरी चिड़िया में अलग-अलग था। शोधकर्ता डॉ. डारिया डाडम के मुताबिक, वन्यजीवों में संक्रमण के लिए हमेशा से ही परजीवी कारण रहे हैं। गौरेया के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। इनके सेंपल की जांच की में प्लाजमोडियम रेलिक्टम की पुष्टि हुई है जो पक्षियों में होने वाले मलेरिया का कारण है। यह चिड़ियों की संख्या में गिरावट की वजह है।

      2. कम उम्र वाली चिड़िया अधिक संक्रमित

        लंदन जूलॉजिकल सोसायटी के डिप्टी डायरेक्टर एंड्रयू क्यूनिन्घम के मुताबिक, ज्यादातर चिड़ियों में प्लाजमोडियम रेलिक्टम मिले हैं। लेकिन संक्रमण का वाहक बनने वाली गौरेया और स्थानीय स्तर पर इनकी ग्रोथ के बीच कोई सम्बंध है। जिन कम उम्र वाली गौरेया की संख्या गिर
        रही थी उनमें संक्रमण का स्तर ज्यादा था। इनके कुछ चिड़ियां ऐसी भी थीं जिनकी ग्रोथ साल-दर-साल बेहतर हो रही थीं।

        1. एंड्रयू क्यूनिन्घम के मुताबिक, संक्रमण बड़े स्तर पर फैला था और इससे चिड़ियों की कई प्रजाति प्रभावित हुई थीं। इससे लंदन और आसपास के इलाके शामिल थे। यह परजीवी मच्छर के काटने से चिड़ियों तक पहुंचा था। नॉर्थ यूरोप में एवियन मलेरिया के मामले अक्सर देखे जा रहे हैं क्योंकि यहां जलवायु परिवर्तन हो रहा है और मच्छरों को पनपने के लिए बेहतर स्थिति मिल रही है। 
           

        2. संक्रमण कैसे फैला, इस पर रिसर्च जारी

          पक्षियों को संरक्षित करने वाली संस्था रॉयल सोसायटी के हेड डॉ. विल पीच के मुताबिक, 1980 से यूरोप और इसके दूसरे शहरों में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। नई रिसर्च के मुताबिक एवियन मलेरिया इसका कारण बताया गया है। चिड़िया कैसे संक्रमित हो रही हैं इसका अब तक पता नहीं लगाया जा सका है। हो सकता है तापमान बढ़ने से मच्छरों की संख्या अधिक बढ़ी हो या परजीवी अधिक उग्र या संक्रामक हो गया हो। 

          1. लंदन जूलॉजिकल सोसायटी यह जानने की कोशिश कर रही है कि जानवरों में बीमारी उनकी आबादी और वासस्थान में कैसे फैल रही है। एवियन मलेरिया से वन्यजीवों की संख्या गिर रही है। इनमें ऐसे जीव भी शामिल हैं जो दुर्लभ और विलुप्तप्राय हैं। संक्रमण फैलने के तरीके और बीमार के प्रभाव को समझने के बाद ही इनकी संख्या को नियंत्रित करने की योजना बनाई जा सकेगी।

          बड़ा सवाल : इंसानों के लिए कितना खतरनाक पक्षियों में होने वाला मलेरिया

          1. क्या यह इंसानों को संक्रमित कर सकता है?

            नहीं, जैव विज्ञानी डेनिस हेसलक्वेस्ट के मुताबिक, पक्षियों में मलेरिया का कारण परजीवी प्लाजमोडियम रेलिक्टम है जबकि इंसानों में प्लाजमोडियम की दूसरी चार प्रजातियां हैं। इसलिए पक्षियों में फैलने वाला मलेरिया इंसानों में नहीं फैलता है। प्लाजमोडियम रेलिक्टम का वाहक मच्छरों की कुछ प्रजातियां होती हैं जबकि इंसानों के मलेरिया का वाहक एनॉफिलीज मच्छर है।

            क्या एवियन मलेरिया को रोका जा सकता है?

            बहुत, ज्यादा नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर चिड़ियों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसे रोकने का एक ही तरीका है मच्छरों की संख्या को कम करना। वाहकों की संख्या कम होने पर बीमारी फैलने का दायरा घटेगा।

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