महिला मूर्तिकारों ने पुरुषप्रधान समाज में बनायीं अलग पहचान

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महिला मूर्तिकारों ने पुरुषप्रधान समाज में बनायीं अलग पहचान

Deepak Chauhan 16-05-2019 14:29:00

आज के समाज में अपने कामो को आगे-आगे दिखने वालो में और नए-नए कामो करे के बहाने अपने नाम को उजारगर करने में सबसे ज्यादा समाज में उन पुरुषों को देखा जाता जो, आज भी समाज को पुरुष प्रधान होने का अंदाजा करते है रहते है उनका मानना हमेशा औरतों को समाज में छूटा और पुरुषों के कहने पर चलने वाला प्राणी मानना होता है। लेकिन इसी बात को गलत साबित करते हुए कोलकत्ता की कुमारतुली की संकरी गलियों से अपनी पहचान को पुरे शहर में बनाने वाली मूर्तिकारो जो वीएस तो महिलाएं है लेकिन उन्होंने वहां पर पुरुषों से ज्यादा नाम कमाया। 

कुमारतुली की संकरी गलियों में सावधानी से चलते हुए कोई भी आसानी से उन कुछ महिला मूर्तिकारों का पता लगा सकता है, जिन्होंने पुरुषों के प्रभुत्व वाली दुनिया में अपने लिए एक अलग जगह बनाई है. कुमारतुली उत्तरी कोलकाता में पारंपरिक मूर्तिकला केंद्र और कुम्हारों की गली है। 

प्रसिद्ध महिला मूर्ति निर्माता चैना पाल ने अपने काम को दिखाने के लिए हाल ही में चीन का दौरा किया था. उनकी दो मूर्तियां एक चीनी संग्रहालय में भी प्रदर्शित की गई थीं. चैना पाल को अपनी जगह बनाने में समय लगा. पहले ग्राहकों को उनकी कला क्षमता पर विश्वास नहीं था. उनकी तरह माला पाल की भी यही कहानी है, जो अब अपनी छोटे आकार की मूर्तियों के लिए मशहूर हैं। आठ सहायकों के साथ बाघबाज़ार में अपना स्टूडियो चलाने वाली चैना ने आईएएनएस से कहा, “मैं बचपन में अपने पिता के स्टूडियो में जाना पसंद करती थी, लेकिन उन्होंने मुझे कभी प्रोत्साहित नहीं किया, क्योंकि उस वक्त महिलाएं कुमारतुली में कम ही देखी जाती थीं. बाद में, जब वह बीमार हुए तो मैंने ही वास्तव में उस अंतर को कम किया, क्योंकि मेरे बड़े भाई अपनी नौकरियों में व्यस्त थे. उनके गुज़रने के बाद 14 साल की उम्र में मैंने स्टूडियो संभाला.”

अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “यह बहुत मुश्किल था, क्योंकि मूझे
मूर्ति बनाने की पूरी प्रक्रिया नहीं पता थी, लेकिन कला के लिए मेरे प्रेम ने इसे जल्दी सीखने में मेरी मदद की.”

यहां उस छोटी लड़की के लिए और कोई रास्ता नहीं था, जो ग्राहकों का विश्वास जीतने में थोड़ा समय लगाती थी.

चैना ने कुशलतापूर्वक अपनी कार्यशाला का प्रबंधन करने, खाना बनाने और अपनी 95 साल की मां की देखभाल करने के लिए ‘दसभुजा’ (दुर्गा) की उपाधि हासिल की है.‘अर्धनारीश्वर दुर्गा आइडल’ के निर्माण पर अपनी कड़ी मेहनत के अनुभव को साझा करते हुए चैना ने कहा, “मैंने 2015 में समलैंगिक समुदाय के अनुरोध पर इसे बनाया था. कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आया, लेकिन मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता. मुझे लगता है कि सभी के पास अपने भगवान की पूजा करने का अधिकार है. मैंने कभी नहीं सुना कि किसी ने ऐसी मूर्ति बनाई है.”माला पाल ने ‘लोग क्या कहेंगे’ की तरफ ध्यान न देकर रूढ़िवाद को तोड़ा और इस पेशे में वर्ष 1985 में आईं. हालांकि पिता के देहांत के बाद 15 साल की लड़की को उसके भाई गोबिंद पाल ने प्रोत्साहित किया। 

सुनहरे रंग की पॉलिश वाली मूर्ति की ओर इशारा करते हुए माला ने कहा, “मैं बड़ी आंखों वाली परंपरागत ‘बंगलार मुख’ और आधुनिक ‘कला’ पैटर्न के साथ दोनों प्रकार की अलग-अलग छोटी मूर्तियां बनाती हूं. यह यूरोप में लोकप्रिय होने के साथ-साथ मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया व कनाडा और शिकागो में प्रसिद्ध है, जहां पूजा होती है। बेहतर कार्य हालात का सपना देख रहीं माला ने कहा, “हालांकि मुझे मान्यता और पुरस्कार मिले हैं, लेकिन इसके अलावा मुझे राज्य सरकार की ओर से कोई अन्य सहायता नहीं मिली है. सरकारी कॉलेजों के अनुरोध पर मैं वहां वर्कशॉप लगाती हूं और थोड़े पैसे कमा लेती हूं. छात्र कभी-कभी यहां भी आते हैं, लेकिन उन्हें यहां बैठाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है.”

सुंदर टेराकोटा आभूषण बनाने वाली महिला ने कहा, “इसके अलावा, उनके लिए शौचालय भी ठीक नहीं है. निश्चित रूप से एक बेहतर जगह की बेहद जरूरत है.”

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