भारत ऐसा राष्ट्र जहाँ पर कई तरह के रीति-रिवाज की अनंत परम्पराएं निभाई जाती है। साथ ही माना जाता है की भारत में ही पुराणिक योग से चलती आ रही उन सभी गाथाओं को अपने अंदर समावेश कर लोग इस कदर उनका सम्मान करते है जिसमे उन्हें खुद को पहुंचे शारीरिक कष्ट का भी ध्यान नहीं होता। अगर सीधी भाषा में कहा जाये तो, यहाँ हर व्यक्ति के उसके संबंध के हिसाब से अलग त्यौहार रीति-रिवाज बनाये गए है जिनको हर स्त्री-पुरुष बड़े ही धूम धाम से मनाया करते है। इसी में एक अश्था का एक पर्व है करवा चौथ, जिसमे पत्नी अपने पति की लम्बी तथा सलामती के लिए पुरे दिन निर्जला व्रत करती है। व्रत को पूर्ण करने के लिए स्त्री रात को चाँद की शक्ल देख कर ही पति की पूजा करके ही उसी के हाथो अपने व्रत को खोल खाना खाती है। ये थोड़ा सा कठोर पर्व लेकिन उतना ही जोड़ी-संबंध को मजबूत करने वाला सबसे बड़ा त्यौहार मन जाता है। हालाँकि समाज की मानो तो ये पर्व केवल जोड़ी के लिए ही होता है, अब यहाँ जोड़ी से मतलब समाज में लड़का-लड़की की बेच हुयी शादी से होता है। लेकन अगर देखा जाये तो समाज इस तरह के उत्सवों को बना कर समाज में रह रहे अन्य लोगो के लिए दीप तले अँधेरा वाली बात कहता है। चूँकि ये रीति-रिवाज समाज की ही कुछ ऐसी महिलाओं जैसे विधवाओं, अविवाहितों और, कुछ अनुष्ठानों में जिनमें बच्चों की भलाई, निःसंतान महिला शामिल होती है, उनके लिए ये एक तरह से चिढ़ाने के काम करता है।
लेकिन विरासत में मिले रिवाजों की बदहाली के बावजूद इतिहास चलता रहता है। और
कभी-कभी अनपेक्षित एजेंसियों के माध्यम से आंदोलन स्वयं मार्ग: अपना मार्ग ढूंढ लेता है, उदाहरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय। सबरीमाला मंदिर पर अदालत के फैसले से बहिष्कार के कई साल टूट जाते हैं, और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में उल्लिखित "प्रकृति के आदेश के खिलाफ कारावास संभोग" का इसका जबरदस्त प्रभाव समाज पर पड़ता है, जिससे समाज के लोगो में इसे सम्मिलित करने के सभी द्वार खुलते दिखाई पड़ते है। भारत में LGBTQ समुदाय, को अब छुपाने की आवश्यकता नहीं थी। चूँकि पिछले वर्ष ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर व्यक्ति की अपनी गरिमा, पहचान , और आत्म सम्मान के लिए लिए गए बड़े फैसले 377 को लागू कर, हर नागरिक को अपने अनुसार सभी त्यौहार हर्ष उल्लास से मानाने का भी हक़ दिया।
वैष्ठव में अब भारत के उत्सवों को थोड़ा बदला गया जिससे अधिक लोगो के लिए बदलाव आये जिसमे बदलाव कई रूप में थे। इससे सबसे बड़ा ये आया के समाज का एक हिस्सा जो कभी पिछड़ा दियाई पड़ता था आज अचानक से समकालीन दिखाई पड़ने लगा। चूँकि अब LGBTQ समुदाय के लोगो को भी सामान्य तरीके से समाज में रहने तथा सभी त्योहारों को समान्य रूप से मनाने का मौका मिल गया था। अब समाज में लिंग या यौन से व्यक्ति की पहचान न करके उसे समाज के सभी त्यौहार को उसके हिसाब से मनाने की अनुमति थी। इस बिच इस समुदाय के लिए करवा चौथ जैसे पर्व भी अपने प्रियजनों की दीर्घ आयु के लिए समाज में मनाने की पूर्णतः अनुमति थी। इसके बाद पर्वों को मानाने के लिए किसी वयक्ति को किसी प्रकार के कोई धार्मिक, जाती या कोई लिंग की पहचान की आवश्यकता नहीं थी।
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