भारतीय सभ्यता में भगवानो को की पूजा करने की रश्म कई जमानों से चली आ रही है। इस रश्म में कई तरह की चीजे पूजन सामग्री के रूप में शामिल की जाती है। जिसमे खाद्य पदार्थों को भी शामिल किया जाता है। ऐसा माना जाता है, की खाद्य सामर्ग्री जिसे प्रशाद भी कहा जाता है इसमें वो पदार्थ ही शामिल किये जाते है जिहने स्वं भगवान् अपने भोजन या उन्हें खाने की इच्छा रखते थे। ऐसे ही कुछ पदार्थ आज समाज में पूरी तरह से मान्यता से परे है जिन्हे व्यक्ति के अधिक सेवन पर खतरनाक माना गया है।
होली हो और भांग का ज़िक्र न हो यह कैसे हो सकता है. होली में लोग भांग को ठंडाई में मिलाकर पीते हैं या कई लोग इसे पीसकर भी खाते हैं। कई लोग भांग पीने के बाद ख़ुशी महसूस करते हैं. दरअसल, भांग खाने से डोपामीन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। डोपामीन को 'हैपी हार्मोन' भी कहते हैं, जो हमारे मूड को कंट्रोल करता है और ख़ुशी के स्तर को बढ़ाता है। भांग को अंग्रेज़ी में कैनाबीस, मैरिजुआना, वीड भी कहते हैं. इसमें टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल पाया जाता है, जिसे आसान शब्दों में टीएचसी भी कहते हैं। इसे लेने के बाद अजीब सी ख़ुशी महसूस होती है. ख़ुशी पाने की बार-बार चाहत में लोग इसके आदी भी होने लगते हैं।
भांग को अगर जलाकर सिगरेट या बीड़ी की तरह पीते हैं तो इसका असर कुछ सेकंड में ही होने लगता है। इसके धुएं को हमारे फेफड़े बहुत जल्द सोखते हैं और ये दिमाग़ तक पहुंच जाते हैं। अगर इसे आप पीते हैं या खाते हैं तो इसका नशा आने में आधे से एक घंटे का वक़्त लग सकता है। यह दिमाग़ को कुछ ज़्यादा ही सक्रिय कर देता है. इसका असर थोड़े और लंबे वक़्त दोनों के लिए हो सकता है। थोड़े समय के लिए आपका दिमाग़ हाइपर एक्टिव हो जाता है. सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है. आप आसपास की चीज़ों को महसूस नहीं कर पाते हैं। अगर इसे-इसे बार और ज़्यादा मात्रा में लिया जाता है तो इससे दिमाग़ के विकास पर असर पड़ता है। अगर इसे आप स्कूल-कॉलेज के समय से लेने लगते हैं तो आपके दिमाग़ पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। इसके लेने पर जो ख़ुशी महसूस होती है, वो किसी और चीज़ से नहीं मिलती है. यही कारण है कि बच्चे पढ़ाई, पारिवारिक रिश्ते और प्यार जैसी चीज़ों से ख़ुद को दूर कर लेते हैं। सफलता पाने के बाद जो ख़ुशी
महसूस होती है, उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी का अहसास भांग लेने के बाद होती है।
अगर इसे बहुत ज़्यादा मात्रा में लिया जाता है तो दिमाग़ ठीक से काम करना बंद कर सकता है. चिंता बढ़ जाती है. लोग कुछ भी बोलने लगते हैं. अजीब-अजीब सी चीज़ें दिखने लगती हैं। हार्ट अटैक की संभावनाएं और ब्लडप्रेशर बढ़ जाती है, आंखें लाल होने लगती है. सांस लेने की परेशानियां बढ़ सकती है. महिलाओं को गर्भ धारण करने में भी पेरशानी हो सकती है।
भांग का इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है. इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की क़रीब 2.5 फ़ीसदी आबादी यानी 14.7 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. दुनिया में इसका इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ रहा है क्योंकि यह सस्ता मिल जाता है और ज़्यादा नशीला होता है। कोकिन और दूसरे ड्रग्स इससे कहीं अधिक महंगे और ज़्यादा हानिकारक होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ भांग के सही इस्तेमाल के कई फ़ायदे हैं। भांग आपके सीखने और याद करने की क्षमता बढ़ाती है. अगर भांग का उपयोग सीखने और याद करने के दौरान किया जाता है तो भूली हुई बातें आसानी से याद की जा सकती है। भांग का इस्तेमाल कई मानसिक बीमारियों में भी की जाती है. जिन्हें एकाग्रता की कमी होती है, उन्हें डॉक्टर इसके सही मात्रा के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। जिन्हें बार-बार पेशाब करने की बीमारी होती है, उन्हें भांग के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। कान का दर्द होने पर भांग की पत्तियों के रस को कान में डालने से दर्द से राहत मिलती है। जिन्हें ज़्यादा खांसी होती है, उन्हें भांग की पत्तियों को सुखा कर, पीपल की पत्ती, काली मिर्च और सोंठ मिलाकर सेवन करने की सलाह दी जाती है।
अक्सर लोग भांग और गांजा को अलग-अलग समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. यह एक ही पौधे की प्रजाति के अलग-अलग रूप हैं। पौधे की नर प्रजाति को भांग और मादा प्रजाति को गांजा कहते हैं. गांजा में भांग के मुक़ाबले टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल यानी टीएचसी ज़्यादा होता है। गांजा पौधे के फूल, पत्ती और जड़ को सुखा कर तैयार किया जाता है. वहीं भांग पत्तियों को पीसकर तैयार किया जाता है। इसका इस्तेमाल सदियों से होता आ रहा है. यह पूर्ण रूप से भारतीय पौधा है. भारत में गांजे पर प्रतिबंध है जबकि भांग का इस्तेमाल खुले तौर पर किया जा सकता है।
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