राजस्थान में पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू की नक्की झील आदिवासियों की आस्था का ऐसा केंद्र है, जहां पीपली पूनम पर भरने वाला मेला उनके लिए किसी महाकुंभ से कम नहीं होता। प्रकृति की शांत गोद में निवासरत आदिवासियों की जीवनशैली किसी अजूबे से कम नहीं है। कठोर जीवनयापन के आदिवासियों में मेलों एवं त्योहारों के प्रति विशेष आकर्षण रहता है। इन लोगों को जब भी जन्म, विवाहोत्सव, तीज-त्यौहारों के मनाने, मेलों में जाने का अवसर मिलता है, तो वे इनका भरपूर लुत्फ उठाते हैं। विषम परिस्थितियों के बावजूद इन्हें त्योहारों, मेेलों में मस्ती से नाचते-गाते देख मेले में आए दर्शक उनकी बिंदासगी के कायल हो जाते हैं। फिलहाल आदिवासियों का नक्की झील में पितृ तर्पण करने को लेकर उनका जमावड़ा बना हुआ है।
पीपली पूनम से दो दिन पूर्व आज झील के विभिन्न घाटों पर आदिवासियों ने स्नान आदि करके दिवंगत परिजनों की आत्मा की शांति को लेकर रस्में अदा कीं। पीपली पूनम पर माउंट आबू में भरने वाला मेला उनके लिए महाकुंभ से कम नहीं होता। चटख रंगों के परिधानों मेें नाचते-गाते युवक-युवतियां श्रृंगार प्रधान गीतों से वातावरण को मोहक बना देते हैं। मेले में कहीं हंसते-खिलखिलाते खरीदारी करते तो कहीं अपने हाथों पर अपने प्रिय के नाम, फूल-पत्तियों की सजावट, तो कहीं
गालों पर तिल का निशान खुदवाते युवक-युवतियां देखी जा सकती हैं।
यह क्षेत्र वनवासी बाहुल्य है। इनमें सर्वाधिक संख्या गरासियों की है। गिरी पर रहने के कारण ये लोग गिरिवासी या गिरासिए कहलाए। कालांतर में जिसका अपभ्रंश नाम गरासिए से प्रचलित हुआ। कहा जाता है ये लोग प्राचीनकाल में वनों में तप करने वाले ऋषियों की रक्षा करते थे। वनवासी गरासियों के तीज त्यौहार सनातन धर्म के समान ही हैं, लेकिन वनवासी होने से इनकी परंपराओं में कुछ भिन्नता है। युवक-युवतियां आकर्षणवश भागकर वनों में पति-पत्नी की भांति रहने लगते हैं। संतान होने के बाद ही ये विवाह की औपचारिकता पूरी करते हैं।
इनके विवाह में कई बार इतना विलम्ब होता है कि इनके विवाह समारोह में उनके पुत्र-पौत्रों की भरमार होती है। हालांकि ये लोग लंबे समय तक बिना विवाह किए रहते हैं, लेकिन मान्यतानुसार जीवन के अंतिम समय तक इन्हें परम्परानुसार विवाह बंधन में बंधना है। इसके बाद ही उनकी मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार की क्रियाएं संपन्न की जा सकती हैं। पीपली पूनम को मेला भरने से पूर्व अलसुबह नक्की झील के परिक्रमा पथ से सटे विभिन्न घाटों पर अस्थि विसर्जन, पितृ-तर्पण की रस्म अदायगी के लिए हवन-यज्ञ किए जाते हैं जहां वे ढोल की थाप पर नाच गाकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
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