ऐसा माना जाता है कि हीर रांझा की कहानी का अंत सुखद था लेकिन वारिस शाह ने अपनी कहानी में दुखद अंत बताया था। वारिस शाह ने स्थानीय लोकगीतों और पंजाब के लोगों से हीर रांझा की प्रेम कहानी के बारे में पता कर कविता लिखी थी जिसे ही सभी लोग अनुसरण करते हैं। उनके अनुसार ये घटना आज से 200 साल पहले सच में घटी थी जब पंजाब पर लोदी बश का शासन था।
झांग, पाकिस्तान के पंजाब के झांग ज़िले की नामचीन राजधानी है। यह मशहूर नदी चेनाब के पूर्वी तट पर स्थित है। यह जगह मुख्य रूप से इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहां मशहूर प्रेमी, हीर और रांझा दफन हैं। यहां तक कि, माई हीर, जैसा कि वहां के श्रद्धालू उन्हें बुलाते हैं, लोधी वंश के समय में इस गांव में ही पैदा हुई थीं।
हीर-रांझा का यह मकबरा काफी अलग है, यहां दूर-दूर से लोग इसकी शिरकत करने आते हैं। इस मकबरे पर लिखा है, "दरबार आशिक-ए-सादिक माई हीर वा मियां रांझा'। इसका मतलब प्रेमी माई हीर और मियां रांझा का दरबार उनके अमर प्रेम की प्रशंसा करता है। यहां, इन दो प्रेमियों के शुद्ध और अमर प्रेम के सम्मान में इन्हें एक ही कब्र में दफनाया गया है।
हीर और रांझा के प्यार की कहानी
इन दो प्रेमियों की प्यार की कहानी बड़ी दिलचस्प है। हीर का असली नाम इज़्ज़त बीबी था, वह झांग में रहने वाले चुचक सियाल और मल्की की बहादुर बेटी थीं। वहीं, रांझा का असली नाम मियां उमर था, वह पास के गांव तख्त हज़ारा में रहने वाले भाइयों में से सबसे छोटे थे। रांझा चारों भाइयो में सबसे छोटे होने की वजह से अपने पिता के बहुत लाडले थे। अपने भाइयों से ज़मीन के विवाद के चलते रांझा ने घर छोड़ दिया। वह अपनी बांसुरी लेकर गांव से निकल पड़े और हीर के गांव पहुंच गए।
हीर, रांझा की बांसुरी की आवाज में मंत्रमुग्ध हो जाती थीं और धीरे-धीरे इन दोनों को एक दूसरे से प्यार हो
गया। ज़्यादा समय साथ बिताने के इरादे से हीर ने रांझा को मवेशी चराने का काम सौंप दिया। वो कई सालों छिप छिपकर मिलते रहे। एक दिन हीर के चाचा कैदो ने उन्हें साथ देख लिया और सारी बात हीर के पिता और मां को बता दी। हीर की ज़बरदस्ती किसी और से शादी करवा दी गई और रांझा को गांव छोड़कर जाना पड़ा।
हीर ने अपने पति को स्वीकारने से इंकार कर दिया और रांझा को खत लिखकर उसके साथ भाग जाने के लिए कहा। रांझा झांग आकर हीर को लेकर भाग गया। लेकिन, इनकी ज़िंदगी में यह खुशी के पल ज़्यादा दिन के नहीं थे। हीर के माता पिता निकाह के लिए राजी हो गए। शादी के दिन हीर के चाचा कैदो ने उसके खाने में ज़हर मिला दिया ताकि ये शादी रुक जाए। ये ख़बर जैसे ही रांझा को मिली वो दौड़ता हुआ हीर के पास पहुंचा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हीर ने वो खाना खा लिया था जिसमें ज़हर मिला था और उसकी मौत हो गई। रांझा अपने प्यार की मौत के दुख को झेल नही पाया और उसने भी वो ज़हर वाला खाना खा लिया और हीर के ही करीब उसकी भी मौत हो गई। हीर और रांझा को उनके पैतृक गांव झंग में दफन किया गया।
जवान प्रेमियों के लिए मक्का है यह दरगाह
आज इतने सालों बाद नौजवान प्रेमियों के लिए यह जगह मक्का से कम नहीं है। जो प्रेमी अपनी पसंद से शादी करना चाहते हैं वह इनके मकबरे पर ज़रूर आते हैं। यहां आकर वह दुआ करते हैं और दरगाह की दरवाज़े पर धागा बांधते हैं, वहीं लड़कियां रंग बिरंगी चुड़ियां चढ़ाती हैं।
यहां तक कि जिन लोगों के दिल टूटे हैं वह भी यहां आकर सुकून पाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि उन्होने यहां पवित्र उपस्थिति का अनुभव किया है। अगर आप पाकिस्तान में रहते हैं या वहां जा सकते हैं तो हीर और रांझा के दरगाह पर ज़रूर जाएं।
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