आज के दौर में जहां छात्रसंघ चुनाव लड़ने में भी लाखों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं वहां देश की संसद में एक ऐसा सांसद भी पहुंचा है जो एक करोड़पति उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था लेकिन उसने बिना एक भी पैसा खर्च किए जीत लिया चुनाव। जानिए कौन है वो सांसद और कैसे किया ये करिश्मा ओडिशा में मिसाइल टेस्टिंग के लिए प्रसिद्ध बालासोर लोकसभा क्षेत्र से इस बार भाजपा प्रतापचंद्र सारंगी सांसद चुने गए हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी करोड़पति उम्मीदवार बीजद के रबिंद्र कुमार जेना को हराया। दावा है कि चुनाव में उन्होंने कुछ भी खर्च नहीं किया। मंगलवार को वे संसद भवन पहुंचे तो उनसे मिलने को हर कोई उत्सुक था। 64 वर्षीय सारंगी आज भी साइकिल ही चलाते हैं। लोग उन्हें ओडिशा का मोदी कहते हैं। वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, उनकी पहचान सामाजिक सरोकार के कार्यों से है। वह अविवाहित हैं, एक छोटे से घर में रहते हैं और सन्यासियों की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। बालासोर में सांसद चुने जाने के बाद सोशल मीडिया पर उनका नाम भी प्रमुखता से ट्रेंड करता रहा है।
प्रतापचंद्र सारंगी का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव रहा। वह रामकृष्ण मठ में संन्यासी बनना चाहते थे। इसलिेए कई बार पश्चिम बंगाल में हावड़ा स्थित बेलूर
मठ में रह चुके हैं। सारंगी ने जब मठ के सन्यासियों से इच्छा जताई तो उन्होंने उनके बारे में जानकारी हासिल की। मठ को पता चला कि सारंगी की मां जीवित हैं और विधवा हैं, तो उन्होंने सारंगी से आग्रह किया कि वह घर लौटकर मां की सेवा करें। इस पर सारंगी गांव लौट आए और मां के साथ समाज की भी सेवा करने लगे। उनकी मां का पिछले साल ही देहांत हुआ।
बालासोर में नीलगिर के गोपीनाथपुर गांव में 4 जनवरी 1955 को जन्मे प्रतापचंद्र सारंगी नीलगिर विधानसभा क्षेत्र से 2004 और 2009 में विधायक चुने जा चुके हैं। 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इस बार उन्होंने 2014 में जीते बीजू जनता दल के रबिंद्र कुमार जेना को ही 12,956 वोटों से पराजित किया। 2009 में यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीकांत जेना ने विजय हासिल की थी।
ट्विटर पर उनकी एक पोस्ट किसी यूजर ने 24 मई को शेयर की थी। इसे 3600 से अधिक बार री-ट्वीट किया जा चुका है। कई यूजर्स ने लिखा कि सारंगी को ओडिशा का मुख्यमंत्री बनना चाहिए, क्योंकि उन्होंने जमीनी स्तर पर समाज सेवा के बहुत काम किए हैं। सारंगी बालासोर और मयूरभंज के आदिवासी बहुल गांवों में गण शिक्षा मंदिर योजना के तहत कई स्कूल संचालित करते हैं, जिन्हें सामर कारा केंद्र नाम दिया गया है।
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