पुराणिक काल से ही लड़कियों को अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग में लानी वाली प्रथाओं ने आज के अत्याधुनिक युग में देह व्यापार का नाम दे दिया है। ये व्यापार कही तो क़ानूनी रूप से चल रहा है और कही तो गैर क़ानूनी रूप से चल रहा होता है। क़ानूनी रूप से चलने वाले व्यापार का जिक्र अपनी अजीबोगरीब लिखावट के लिए मशहूर सआदत हसन मंटो ने अपनी लिखी कहानी काली सलवार में भी किया था। उनके अनुसार पंजाब के एक शहर ने ही अंग्रेजों द्वारा एक कालोनी बसाई गयी जिसमे सिर्फ वेश्यां ही रहेगी और वहा के निवासियों को पैसो के बदले सेक्स बैच सकेंगी। ऐसी ही जगहों को कोठा भी बोलै जाता है यहाँ पर महिलाएं अपनी राजी से देह व्यापार करती है। हालाँकि ऐसा बहुत साडी जगहों पर नहीं होता। लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा क़ानूनी रूप से सेक्स काम के लिए एक देश है जिसका नाम नीदरलैंड है।
एम्सटर्डम का रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट घुमावदार गलियों और घरों की खिड़कियों पर खड़ी होकर ग्राहकों को लुभाती महिलाओं के लिए मशहूर है। यह नीदरलैंड में पर्यटन और सांस्कृतिक पहचान का केंद्र है, जहां पिछले कई दशकों से सुरक्षित और क़ानूनी रूप से वैध सेक्स की इजाज़त है. लेकिन जल्द ही ये सब बंद हो सकता है। नीदरलैंड की संसद में सेक्स वर्क की क़ानूनी वैधता पर बहस की तैयारी चल रही है। दक्षिणपंथी ईसाई और वामपंथी महिलावादी, दोनों सेक्स वर्क का विरोध कर रहे हैं। उधर, रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट की यौनकर्मियों पर काम करने के अपने अधिकार को बचाने का दबाव है।
'क्या होता अगर वो आपकी बहन होती?' ये लाइन नीदरलैंड में सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान का हिस्सा है। इस अभियान का नाम है- 'मैं अनमोल हूं' और इसके तहत पेड सेक्स को अपराध बनाने की मांग हो रही है। सारा लूस इस अभियान के साथ काम करती हैं। उनका कहना है कि पिछले सात साल में 46 हज़ार लोगों के दस्तख़त जुटाए गए, तब जाकर संसद में बहस होने वाली है। इस अभियान का मक़सद मौजूदा क़ानून को बदलना है ताकि 'नॉर्डिक मॉडल' को अपनाया जा सके। कामकाजी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा कम करने के लिए 'नॉर्डिक मॉडल' के तहत सेक्स वर्कर को किराये पर लेने वाले मर्दों पर जुर्माना लगाया जा सकता है। फ़िलहाल नीदरलैंड में दो वयस्कों के बीच रज़ामंदी से पेड सेक्स वैध है। यह क़ानून 1971 से लागू है। लूस को लगता है कि #MeToo के ज़माने में यह क़ानून पुराना पड़ चुका है। रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट में चाहे कितनी भी यौन आज़ादी हो, यह आज के ज़माने के हिसाब से नहीं है।
रोमानिया की एक सेक्स वर्कर का कहना है कि वह किराया चुकाने और कुछ पैसे कमाने के लिए यह काम करती हैं। वो एक दशक तक रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट में काम कर रही हैं। उन्होंने एक प्रेस इंटरव्यू में कहा, "यदि यह याचिका (संसद में) मंज़ूर कर ली जाती है तो यह मुझे यहां से बाहर निकालने के लिए अच्छा क़दम होगा." फ़ॉक्सी नाम से जानी जाने वाली दूसरी सेक्स वर्कर को लगता है कि इससे उनका पेशा और वर्जित हो जाएगा. उनकी निगरानी बढ़ जाएगी और लोग उनको कम स्वीकार करेंगे। वो कहती हैं, "हमें भूमिगत होना पड़ेगा ताकि पुलिस और हेल्थ सर्विस के लोग हमें आसानी से न पकड़ पाएं। "फ़ॉक्सी का कहना है कि वो अपनी मर्ज़ी से यह काम करती है और मानव
तस्करी जैसी समस्याएं दूसरे क्षेत्रों में भी हैं।
अमरीका के नेवादा की सेक्स वर्कर क्रिस्टिना परेरा सेक्स के लिए भुगतान को सही बताती हैं। वह कहती हैं, "यह उन गिने-चुने पेशों में से एक है जहां महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा कमाती हैं. महिलावादी इसे छीनना चाहते हैं जो कि मूर्खतापूर्ण है."परेरा कभी-कभी सेक्स वर्क करती हैं. वो डॉक्टरेट कर रही हैं और उनकी रिसर्च सेक्स इंडस्ट्री पर ही है। वो सेक्स वर्क को अपराध बनाने के ख़िलाफ हैं. उनका कहना है कि इस काम से उन्होंने अच्छी ज़िंदगी बनाई है। परेरा कहती हैं "मैंने पर्याप्त पैसे कमाए हैं. मैं पीएचडी पूरी कर सकती हूं और मुझे काम नहीं करना पड़ता। पेशा बंद होने से सैकड़ों-हज़ारों लोग पेशे से बाहर हो जाएंगे."नेवादा में कुछ जगहों पर सेक्स वर्क वैध है. परेरा कहती हैं, "वेश्याघरों के बारे में अच्छी बात यह है कि चूंकि यह वैध है इसलिए वहां आप सुरक्षित हैं। यदि कोई ग्राहक काबू से बाहर हो जाए तो आप पैनिक बटन दबा सकते हैं। "
पत्रकार और अभियान की सदस्य जूली बिंदल का तर्क है कि जिन देशों में सेक्स वर्क वैध है, वहां दलालों और ग्राहकों के हाथों ज़्यादा सेक्स वर्कर्स जाती हैं। उनका कहना है कि पत्रकारिता में काम करते हुए उन्हें कभी पैनिक बटन की ज़रूरत नहीं पड़ी। बिंदल 'नॉर्डिक मॉडल' के पक्ष में हैं. यह मॉडल नॉर्डिक देशों से बाहर फैल चुका है। यह मॉडल सेक्स वर्क को अपराध नहीं मानता, लेकिन पैसे देकर सेक्स करने वाले ग्राहकों को अपराधी समझता है। बिंदल को लगता है कि सेक्स वर्क अब भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है. इसे दूसरे किसी भी नियमित करियर के साथ न जोड़ा जा सकता है, न इस बारे में उस तरह से बात की जा सकती है। यह समस्या तब तक रहेगी जब तक सेक्स वर्कर्स को उपभोग की वस्तु समझा जाता रहेगा। बिंदल जर्मनी के मेगा ब्रॉथल की मिसाल देती हैं। वो कहती हैं, "वहां मर्दों के लिए विज्ञापन होते हैं कि वे जितनी चाहे उतनी महिलाओं के साथ रह सकते हैं और साथ में बर्गर और बीयर ले सकते हैं. यह उपभोक्ता संस्कृति का हिस्सा है. वे (सेक्स वर्कर्स) बर्गर में मांस के टुकड़ों की तरह हैं.
परेरा कहती हैं, "यह झूठी धारणा पर आधारित है कि महिलाएं व्यावसायिक सेक्स के लिए कभी राज़ी नहीं होतीं और वे कभी इसका आनंद नहीं लेतीं. नॉर्डिक मॉडल पुरुषों को शिकारी मानता है, लेकिन ज़्यादातर सेक्स वर्करों के लिए यह हक़ीक़त नहीं है."परेरा के मुताबिक नॉर्डिक मॉडल इस झूठी कट्टरपंथी महिलावादी सोच पर आधारित है कि हम अपने शरीर का अंदरूनी हिस्सा किराये पर चढ़ा रहे हैं. वो कहती हैं कि उन्मूलनवादी जिस तरह से बातें करते हैं, वह वेश्यालय में आने वाले ग्राहकों की तुलना में अधिक अपमानजनक है। उधर उन्मूलनवादियों का तर्क है कि सेक्स वर्क के पहलुओं को अपराध बनाने, ग्राहकों को जिम्मेदार ठहराने से महिलाएं ज़्यादा सुरक्षित होती हैं और किसी कार्यस्थल में उनका सशक्तीकरण होता है। नीदरलैंड की संसद में होने वाली चर्चा जैसे-जैसे करीब आ रही है, यह बहस गर्माती जा रही है। परेरा की सलाह है कि उन्मूलनवादियों को ज़्यादा सेक्स वर्करों से बात करनी चाहिए, लेकिन बिंदल का कहना है कि परेरा का अनुभव ही सबका अनुभव नहीं है। परेरा कहती हैं, "जब तक पुरुष हैं तब तक सेक्स की मांग होगी. वयस्क महिला अगर अपनी मर्ज़ी से ऐसा करती है तो यह ठीक है."
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