पूरी दुनिया में तय परिभाषा के अनुसार जो लोग 1980 के दशक से लेकर 1990 के दशक के मध्य तक पैदा होते हैं, उन्हें इस कैटेगरी में रख जाता है. इनकी आयु सीमा 1980 से 1996 तक के बीच की मानी जाती है. इस आयु वर्ग के लोगों को भी तमाम सेक्टर (जैसे सोशल और इकोनॉमिक्स) अपने अध्ययन के केंद्र में रखते हैं.लेखक विलियम स्ट्रॉस और नील होवे को 1987 में इस शब्द को गढ़ने का श्रेय जाता है. ये उस दौरान हुआ जब 1982 में पैदा हुए बच्चों के लिए ये टर्म इस्तेमाल किया था. उन्होंने अपनी किताबों जनरेशन: द हिस्ट्री ऑफ अमेरिकाज फ्यूचर, 1584 से 2069 (1991) और मिलेनियल्स राइजिंग: द नेक्स्ट ग्रेट जनरेशन (2000) में इसके बारे में लिखा है.अगस्त 1993 में इसी को लेकर एक ग्लोबल मीडिया ब्रांड ने अपने विज्ञापन में जनरेशन Y का जिक्र करके इसे मशहूर बना दिया. उस दौरान ये मिलेनियल्स
11 या उससे कम उम्र के थे और साथ ही आने वाले दस वर्षों के किशोर थे, जिन्हें जेनरेशन एक्स से अलग परिभाषित किया गया था. मिलेनियल्स को इको बूमर्स भी कहा जाता है. इकोबूमर्स कहने के पीछे वजह की बात करें तो आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में इस दशक में सबसे ज्यादा जन्मदर बढ़ी थी. अगस्त 1990 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्म दर चरम पर पहुंच गई थी.विशेषज्ञ मानते हैं कि मिलेनियल्स का अपना अलग माइंडसेट हैं. ये एक ऐसी सिविक माइंडेड जेनरेशन मानी जाती है जो समाज के पुरानेपन से हटकर नया सोचने में आगे रहती है.
इस जेनरेशन के लोग टैकसेवी और बचत व निवेश का महत्व जानने वाले माने जाते हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो इस जेनरेशन को सबसे ज्यादा स्वीकार्यता के लिए जाना जाता है. समाज में नये बदलावों को स्वीकार करने में ये जेनरेशन काफी आगे होती है
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