महज़ ज़िहाद शब्द के इस्तेमाल से किसी को आतंकी नहीं ठहराया जा सकता: कोर्ट

बरतें सावधानी-कुत्तों के साथ साथ,दूसरे जानवरों के काटने से भी होता है रेबीज का खतरा चिराग पासवान के समर्थन में RJD की शिकायत लेकर आयोग पहुंची BJP क्रू ने बॉक्स ऑफिस पर अब तक कितने करोड़ कमाए शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा पर ED का एक्शन,98 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त आइये जानते है किस कारण से बढ़ सकता है ब्रेन स्ट्रोक का खतरा रामनवमी जुलूस पर हुई हिंसा को लेकर राज्यपाल को लिखा पत्र गॉर्लिक-बींस से बनने वाला टेस्टी सलाद प्रदोष व्रत 2024:आइये जानते है प्रदोष व्रत और शुभ मुहूर्त इन ड्रिंक्स की मदद से Vitamin D की कमी को दूर करे बेंगलुरु-रामनवमी पर हिंसा की घटना सामने आई सलमान खान फायरिंग मामले-मुंबई क्राइम ब्रांच ने आरोपियों से पूछताछ शुरू की कलरएसेंस वाले नंदा का गोरखधंधा चोर ठग या व्यवसायी गर्मियों में पेट को ठंडा रखने के लिए बेस्ट हैं ये 3 ड्रिंक्स आज का राशिफल भारत में वर्कप्लेस की बढ़ रही डिमांड 46 साल की तनीषा मुखर्जी मां बनने को तरस रहीं PAK और 4 खाड़ी देशों में भारी बारिश सिंघम अगेन के सेट से सामने आईं दीपिका पादुकोण की तस्वीरें प्रेग्नेंसी में भी काम कर रही हैं दुबई की बारिश में बुरे फंसे राहुल वैद्य PM मोदी ने विपक्ष पर साधा निशाना

महज़ ज़िहाद शब्द के इस्तेमाल से किसी को आतंकी नहीं ठहराया जा सकता: कोर्ट

19-06-2019 17:34:35

महाराष्ट्र के अकोला की एक विशेष अदालत ने आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किए गए तीन युवकों को बरी करते हुए कहा कि केवल ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने भर से किसी की आतंकी नहीं कहा जा सकता.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सलीम मालिक (29), शोएब खान (29) और अब्दुल मालिक (24) को 25 सितंबर 2015 को बकरीद के मौके पर पुसद की मस्जिद के बाहर राज्य में बीफ बैन को लेकर पुलिसकर्मियों पर हमला  करने पर आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) का दावा था कि वे मुस्लिम युवाओं को प्रभावित कर आतंकवादी संगठन में शामिल करने के षड्यंत्र का हिस्सा थे.

तीनों को इन आरोपों से बरी करते हुए विशेष अदालत के जज एएस जाधव ने अपने 21 मई के आदेश में कहा, ‘डिक्शनरी के अनुसार, ‘जिहाद’ का शाब्दिक अर्थ ‘संघर्ष’ होता है. जिहाद एक अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ ‘प्रयास या संघर्ष करना’ होता है. बीबीसी के अनुसार जिहाद का तीसरा अर्थ एक अच्छा समाज बनाने के लिए संघर्ष करना होता है. जिहाद से जुड़े शब्द मुहिम, प्रशासन, अभियान, प्रयास और धर्मयुद्ध हैं. इसलिए आरोपी द्वारा केवल जिहाद शब्द के इस्तेमाल के आधार पर उसे आतंकवादी कहना उचित नहीं होगा.’

अब्दुल को ‘जानबूझकर पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाने’ के लिए तीन साल की सजा मिली थी. क्योंकि वह 25 सितंबर 2015 से जेल में था और तीन साल जेल में गुजार चुका था, उसे भी रिहा कर दिया गया.

अदालत ने कहा, ‘ऐसा दिखता है कि आरोपी नंबर 1 (अब्दुल) ने सरकार और हिंदू संगठनों द्वारा गो-वध पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ अपने गुस्से को हिंसा के रूप में प्रदर्शित किया. इस बात पर कोई शक नहीं है कि उसने ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया है, लेकिन इस निष्कर्ष पर आना कि महज इस शब्द के प्रयोग से उसे आतंकवादी घोषित कर देना चाहिए, बेहद जोखिम भरा है.’

अभियोजन का
कहना था कि अब्दुल मस्जिद में पहुंचा, चाकू निकाला और ड्यूटी पर तैनात दो पुलिसकर्मियों पर हमला किया. हमले से पहले उसने कहा कि बीफ बैन के चलते वो पुलिसवालों को मार देगा. हालांकि अब्दुल ने इससे इनकार किया था.

अदालत ने इस बारे में घायल पुलिसकर्मियों और बाकी पुलिसकर्मियों के बयान पर विश्वास किया, अदालत का कहना था कि सिर्फ इसलिए कि वे पुलिसकर्मी हैं, उनके बयान को ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

अब्दुल के वकीलों का दावा था कि पुलिसकर्मियों के बयान में गड़बड़ियां थीं. हालांकि अदालत ने माना कि घटनास्थल पर आरोपी की उपस्थिति के सबूत हैं. लेकिन उसने यह मानने से मना कर दिया कि अब्दुल को हत्या के प्रयास का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जैसा पुलिस द्वारा कहा गया, क्योंकि घायल पुलिसवाले को किसी ‘महत्वपूर्ण’ अंग पर कोई चोटें नहीं आयी थी.

एटीएस ने यह भी दावा किया था कि अपने इकबालिया बयान में अब्दुल ने शोएब और सलीम का नाम लिया था. एटीएस का दावा था कि इन दोनों ने अब्दुल और कुछ युवाओं को ‘जिहाद’ के लिए प्रभावित किया, सीक्रेट बैठकें कीं और नफरत भरे भाषण दिए. लेकिन अदालत ने माना कि यह इकबालिया बयान ‘ऐच्छिक’ नहीं थी.

अदालत ने माना कि यह दावा किया गया था कि अब्दुल ने पुलिस हिरासत में 25 दिन रहने के बाद इकबालिया बयान देने की इच्छा जाहिर की थी और उसे कोई कानूनी मदद नहीं दी गयी. अदालत ने कहा कि इस बात पर ‘कोई संदेह नहीं है’ कि आरोपी पुलिस की नाक के नीचे था एयर तब उसका बयान दर्ज किया गया.

एटीएस का यह भी दावा था कि अब्दुल एक ‘फ्रेंड्स फॉरएवर’ नाम के व्हाट्सऐप ग्रुप का हिस्सा था, जहां ‘जिहाद’ की ऑडियो क्लिप्स शेयर की गई थीं. हालांकि जब इस ग्रुप के पांच अन्य सदस्यों के भी बयान रिकॉर्ड किये गए, तब उन्होंने अभियोजन के इस दावे का समर्थन नहीं किया था.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :