पश्चिम बंगाल के छोटे से शहर दुर्गापुर से पढ़ने दिल्ली आई आइशीघोष अब जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) छात्रसंघ की नई अध्यक्ष हैं. दौलतराम कॉलेज से पॉलिटिक्स की पढ़ाई करने के बाद फिलहाल वो जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से एमफिल की छात्रा हैं. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से छात्र हितों को लेकर लिए गए किसी भी निर्णय में खामी पाए जाने पर वो विरोध के सुर उठाती रही हैं. बीते दिनों एमबीए की 12 लाख रुपये तक बढ़ी फीस को लेकर वो भूख हड़ताल पर भी बैठी थीं.
बातचीत में आइशी ने कहा कि जेएनयू ऐसा कैंपस है जो बराबरी के लिए जाना जाता है. यहां एक संगठन जहां पूरी तरह स्त्रीविरोधी मानसिकता वाला है तो वहीं कैंपस का मूल स्वभाव बराबरी है. यहां मुझे पूरे कैंपस ने सपोर्ट किया है. स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया संगठन से जुड़ी आइशी घोष की इस जीत को बहुत ऐतिहासिक माना जा रहा
है. कैंपस में पूरे 13 साल बाद इस संगठन से कोई अध्यक्ष चुना गया है.
आइश कहती हैं कि ये जीत स्टूडेंट कम्युनिटी की है. आइशीने कहा कि वो यहां भविष्य में हॉस्टल और रीडिंग रूम का मुद्दा उठाएंगी. वो कहती हैं कि जेएनयू की अपनी संस्कृति है, आज जेएनयू में मेरे जैसी छोटे शहर से आई लड़की प्रेसीडेंट बनी है तो जरूर कुछ तो बात है इस कैंपस में. यहां हर तबके से आकर लोग पढ़ सकते हैं, साथ ही पहचान भी बना सकते हैं. लेकिन कुछ दिनों से कैंपस को प्राइवेटाइजेशन की ओर ले जाने की तैयारी चल रही है. हमारा अगला मुकाबला इसी व्यवस्था से होगा. अपने आगे के भविष्य के बारे में वो कहती हैं कि मैं जेएनयू के बाहर देश की राजनीति में भी जाना पसंद करूंगी. मुझे लगता है कि महिलाएं राजनीति के जरिये ही समाज में अपने लिए पल रही सोच को बदल सकती हैं
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