महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने शनिवार को कर दिया है। हालांकि, राजनीतिक दल और नेता पहले से ही राजनीतिक समीकरण मिलाने में जुट चुके थे। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच गठबंधन पर फैसला अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही सीटों के बंटवारे का ऐलान हो सकता है। उधर, कांग्रेस और एनसीपी के नेता चुनावों को ध्यान में रखते हुए पहले ही पाले बदल चुके हैं। हालांकि, पार्टी नेतृत्व में हुए बदलाव से नए जोश की उम्मीद भी की जा रही है। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने वाली हर पार्टी के पास कहीं बढ़त है तो कहीं कड़ी चुनौतियां। यहां देखें, 21 अक्टूबर को होने वाले मतदान से पहले महाराष्ट्र की 6 बड़ी पार्टियों का क्या है हाल...
1. भारतीय जनता पार्टी
कहां आगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अपील के बलबूते बीजेपी के हौसले बुलंद हैं। 2014 में 122 सीटों के साथ पहली बार सीएम की कुर्सी मिलने के बाद से पार्टी निकाय चुनावों में भी लगातार आगे बढ़ती जा रही है।
क्या है चुनौती
पार्टी के अंदरूनी नुकसान के कारण परेशानी हो सकती है। कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं को पार्टी में शामिल होने के बाद तरजीह दिए जाने से टिकट की चाह रखने वालों में नाराजगी है। पार्टी में कुछ दागदार बाहरियों को भी शामिल कर लिया गया है, जिससे पार्टी की छवि पर असर पड़ सकता है।
कहां है मौकाजैसे एक समय में कांग्रेस हर जगह नजर आती थी, बीजेपी के पास भी वैसा ही आधार बनाने का मौका है। साथ ही गठबंधन सहयोगी शिवसेना के वोटरों को लुभाने का भी सटीक मौका है।
कांग्रेस
कहां आगे
कांग्रेस की राज्य इकाई को हाल ही में नए हाथों में सौंपा गया है। इससे पार्टी को स्थिरता मिल सकती है। साथ ही चुनाव प्रचार अभियान को रफ्तार मिल सकती है।
क्या है चुनौती
कार्यकर्ताओं के मनोबल को वापस लाना बड़ी चुनौती होगा। पार्टी के पास फंड्स की कमी है और सबसे बड़ा सवाल राज्य में एक लोकप्रिय चेहरे का है।
किससे खतरा
विपक्ष के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, ऐसे में उसे खतरा रहेगा। ऐसे नेताओं से भी सतर्क रहना होगा जिन्हें सीएम ने हाशिए पर ला दिया है। वे पार्टी की संभावनाएं खराब करने की कोशिश कर सकते हैं।
कहां है मौका
पार्टी के पास मुंबई में खुद को दोबारा खड़ा करने का बड़ा मौका है ताकि इलाके में वह पकड़ वापस हासिल कर सके। उसके पास खोने को कुछ नहीं, ऐसे में सब कुछ झोंक सकती है।
किससे खतरा
नेतृत्व और सीटों
के लेकर पार्टी की अंदरूनी कलह भारी पड़ सकती है। वहीं, पार्टी के नेता भी विधायकी की चाह में बीजेपी की ओर रुख कर रहे हैं।
3. शिवसेना
कहां आगे
बीजेपी से गठबंधन का फायदा शिवसेना को हो सकता है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच 2014 से चली आ रही कन्फ्यूजन खत्म हो जाएगी। कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं के पार्टी में शामिल होने से आत्मविश्वास बढ़ेगा।
क्या है चुनौती
सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन सहयोगी बीजेपी से ही आ सकती है। बीजेपी और पीएम की लोकप्रियता के ऊपर निर्भरता से नुकसान हो सकता है। लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह आरे, अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ होने के बावजूद मजबूत गठबंधन में उसके साथ है।
कहां है मौका
आदित्य ठाकरे को नेता के तौर पर पेश करने के लिए बड़ा मंच। विपक्ष के कमजोर होने के कारण शिवसेना उस क्षेत्र में भी अपने लिए मौके निकाल सकती है।
किससे खतरा
बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिलने से सेना की कीमत गिर सकती है। ऐसे में उसे 2024 के चुनावों तक खतरा झेलना पड़ सकता है।
4. नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
कहां आगे
शरद पवार के तौर पर मजबूत पार्टी नेतृत्व। ऐसे कई इलाके हैं जो एनसीपी के गढ़ हैं, वहां एनसीपी की पकड़ मजबूत रहने की संभावनाएं हो सकती हैं।
क्या है चुनौती
पवार के नजदीकियों समेत बड़ी संख्या में नेताओं के बीजेपी में जाने से नुकसान हो सकता है। पार्टी की कमान आगे चलकर किसके हाथों में होगी, अजित पवार या सुप्रिया सुले, यह भी बड़ी सवाल है। पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी के हाथ से कई इलाके निकल गए हैं। छगन भुजबल जैसे नेताओं का घोटाले में नाम आना और अजित पवार और दूसरे नेताओं के खिलाफ राज्य सहकारी बैंक कर्ज केस में एफआईआर होने से पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव।
कहां है मौका
कथित सिंचाई घोटाले में पार्टी के नेताओं के खिलाफ पांच साल से चल रही जांच में कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है। सरकार के खिलाफ किसानों और गन्ना सहकारी संगठनों के मूड से फायदा हो सकता है।
5. वंचित बहुजन अगाड़ी
प्रकाश आंबेडकर की वीबीए और MIM में गठबंधन होने से लोकसभा की कम से कम 5 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी को नुकसान हुआ। हालांकि, गठबंधन टूट गया लेकिन कांग्रेस-एनसीपी की कमजोरियां सामने आ गईं। ऐसे में आंबेडकर के मजबूत विपक्षी नेता के तौर पर उभरने का मौका।
6. AIMIM
पिछली बार AIMIM को 2 विधानसभा सीटें मिली थीं और इस बार भी वीबीए से गठबंधन का फायदा होता। हालांकि, कांग्रेस-एनसीपी की कमजोरी का फायदा पार्टी को भी हो सकता है।
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